सच हम नहीं, सच तुम नहीं, सच है महज संघर्ष ही!

मंगलवार, अगस्त 11, 2009

रोटी और संसद

एक आदमी रोटी बेलता है

एक आदमी रोटी खाता है

एक तीसरा आदमी भी है

जो न रोटी बेलता है,

न रोटी खाता है

वह सिर्फ़ रोटी से खेलता है

मैं पूछता हूं--'यह तीसरा आदमी कौन है ?

'मेरे देश की संसद मौन है।

- सुदामा पाण्डेय धूमिल

9 टिप्‍पणियां:

  1. ये तीसरा आदमी वो वर्ग है जो रोटी केवल स्वाद के लिए खाता है..यानी रोटी से खेलता है.....

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  2. वाह, चार शब्दों में ही आपने बड़ी गूढ़ बात कह डाली !

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  3. flयह तीसरा आदमी हमारी देश की आम जनता है जिसे रोटी तक नसीब नहीं होती........बहुत खूब लिखा........

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  4. धूमिल की यह जानी पहचानी रचना एक बार और पढ़ना अच्छा लगा.

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  5. इतने कम शब्दों में इतनी गहरी बात. यह धूमिल जी का ही कमाल हो सकता है.

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