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गुरुवार, जून 14, 2012

वन्य जीवों के आशियाने में मानवों का हमला!


वन में मानव, शहर में   


बढ़ई के एक कील मारने भर से बहुमंजिला इमारत ध्वस्त नहीं होता, यदि होता है तो विध्वंस के कारणों का पता लगाना होगा। बात हो रही है वन्य जीवों के आशियानों की। दरअसल, आशियाने कई प्रकार के होते हैं, पेड़ वाले आशियाने, कंक्रीट वाले आशियाने, गरीबों के फूस वाले आशियाने। बहुतेरे प्राणी, बहुतेरे आशियाने। पर इन सब आशियानों में कंक्रीट वाला आशियाना जिस तीव्र गति से बढ़ रहे हैं उससे कहीं ज्यादा तेज वन्यजीवों के आशियाने उजड़ते नजर आ रहे हैं। और जो बचे हैं या जिन्हें बचाने की जद्दोजहद की जा रही है वहां पर्यटक धमक जा रहे हैं अपनी दोगली शौक करने के लिए। हाल हीं में उत्तराखण्ड के जिम काॅर्बेट नेशनल पार्क में बढ़ रहे ध्वनी प्रदूषण को लेएक एनजीओ को मजबूरन जनहित याचिका दायर करना पड़ा। वन्यजीवों के लिए जो माकूल पनाहगाह हैं उसमें जिम काॅर्बेट का नाम उल्लेखनीय है। पर, वहां के आस-पास में पर्यटकों के आवभगत के लिए बने रिसाॅर्ट और होटल वन्यजीवों के शांतिपूर्ण प्रवास में खलल पैदा कर रहे हैं। मसलन, तेज आवाज में संगीत सुनना, पार्टी करना और हो हल्ला मचाना। शायद यहीं कारण भी है कि इन दिनों जंगली जीव इन निहायत गैरजरूरी और दोगले शौक से उचट कर आस-पास के गांवों में हमला करते नजर आ रहे हैं और ‘वन में मानव, शहर में बाघ‘ वाली कहावत चरितार्थ होते।

                             यहां सवाल यह उठता है कि आखिर क्यों किसी एनजीओ को आगे आकर याचिका दायर करना पड़ता है? क्या हमारे शौक को पूरा करने के लिए विलुप्त हो रहे वन्यजीवों के आश्रयणी हीं मिले हैं? क्या हमारा वहां जाकर शोर-शराबा करना उचित है? और इन सबसे इतर यह कि वन विभाग के आला अधिकारी अब तक क्या करते रहे? एनजीओ की सक्रियता और कोर्ट का डंडा चलने पर ही वन विभाग का जगना विलुप्त हो रहे वन्य सम्पदा के लिए किस दृष्टि से उचित है? एक शाश्वत प्रश्न यह भी कि रिसाॅर्ट को चला रहे काॅरपोरेट के साथ वन विभाग की मिलीभगत रहती है? यहां सवाल सिर्फ एक काॅर्बेट पार्क का नहीं, हर वन्यजीव आश्रयणी के लिए है। अभी स्थानीय एनजीओ के जनहित याचिका पर उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने आदेश दिया है कि 500 मीटर के दायरे में आने वाले रिसाॅर्ट या होटल 50 डेसीबल तक दिन में और 40 डेसीबल तक रात में ध्वनी प्रवाहित कर सकते हैं। उससे ज्यादा ध्वनी प्रवाहित करने पर कार्रवाई। पर मेरा मानना है कि वन विभाग और सरकार को पर्यटन से राजस्व बनाना ही है तो क्या उसके लिए वन्य सम्पदा से समझौता करना सही है? सरकार को चाहिए कि जो भी रिसाॅर्ट या होटल 500 मीटर के दायरे में हैं उन्हें उस क्षेत्र से बाहर पुर्नस्थापित करे। चंद रईशों के शौक को वन प्रक्षेत्र से बाहर के रिसाॅर्ट में भी पूरे किये जा सकते हैं। सैलानी आकर 500 मीटर दूर के रिसाॅर्ट में रूक सकते हैं और वन विहार करने के लिए आधे किलोमीटर का फासला पैदल तय कर सकते हैं। वन विभाग तथा पर्यटन विभाग को चाहिए कि वन विहार के दौरान सैलानियों पर निगाह रखे। कुछ शख्त वन्य कोड भी बनाये जाए। ताकि कोई हुड़दंगी वन में शोर न मचाये। जिम काॅर्बेट की बानगी पूरे भारत की तस्वीर को स्पष्ट है। लिहाजा, समय रहते हमें जागना होगा। वहीं हर भारतीय का यह कर्तव्य बनता है कि वह देश की सम्पदा को बर्बाद करने के बजाय उसकी रक्षा करे जिनमें एक महत्वपूर्ण है वन्य सम्पदा।

लेखक :सौरभ के.स्वतंत्र