सच हम नहीं, सच तुम नहीं, सच है महज संघर्ष ही!

सोमवार, अक्तूबर 31, 2011

विश्व के सात अरबवे संतान का जन्म और दूरबीन!


पेट्रोल एक हज़ार रुपये प्रति लीटर, चीनी पांच सौ रुपये प्रति भर, दाल आठ सौ रुपये प्रति रत्ती , सब्जी सात सौ रुपये प्रति दस ग्राम, चावल तीन सौ रुपये प्रति तोला. यह तस्वीर हमारे आने वाले कल की है. दरअसल, इस तस्वीर के पीछे जो बैकग्राउंड है वह बढ़ती जनसँख्या का है. आज पूरे विश्व की आबादी सात अरब पहुँच गयी है और उसमे भारत का योगदान सवा अरब का है. सो,चिंता लाजिमी है. जगह यानी क्षेत्रफल निर्धारित है और उसी में अपनी जनसँख्या को भी सेटल करना है और अपने उत्पाद को भी मांग के हिसाब से बढ़ाना है. लिहाजा, जगह की मारामारी तो अभी से शुरू हो गयी है. अग़र हम अपने चश्मे का पावर और बढ़ा कर देखे तो आने वाले समय की तस्वीर स्पष्ट हो जायेगी. जल, जंगल और जमीन तीनों के लिए युद्ध होने के संकेत मिल रहे हैं. सड़क पर बढ़ते ट्रेफिक की बात की जाए तो सरकार को अब लोगो को शिफ्ट में चलने का मास्टर प्लान तैयार करना पड़ेगा इसमें कोई दो राय नहीं है. लोगों को शिफ्ट में सोना पड़े इसमें भी कोई शक नहीं है और उगते भारत में गिरते लिंग अनुपात के चलते महिलाओं के साथ छेड़खानी के मामले फ़्लू की तरह बढे तो कोई आश्चर्य न होगा. भारत की द्रुत गति से बढ़ती जनसँख्या पर सयुंक्त राष्ट्र संघ ने भी चिंता जताई है और भारत को आगाह भी किया है. यानी अलार्म बज चुका है.

पर बिडम्बना यह है कि भारत में जनसँख्या के बढ़ने पर कोई अंकुश लगाने के ठोस उपाए नहीं हो रहे. जरा सोचिये! क्या जमीं को बढाया जा सकता है, क्या संसाधनों को बढाया जा सकता है, क्या उत्पाद को मांग के हिसाब से बढाया जा सकता है? नहीं, लिहाजा अगर इंधन, दाल, चावल, सब्जी तोला और भरी के हिसाब से आसमानी कीमत पर बिके तो कोई आश्चर्य नहीं होगा. क्योंकि, विश्व का सात अरबवा भाई आ चुका है..जरा दूरबीन से देखिये भविष्य!

- सौरभ के.स्वतंत्र


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मंगलवार, अक्तूबर 25, 2011

कन्फ्यूश ! बिहार के मुखिया नीतीश कुमार

बेगानों की शादी में अब्दुल्ला दीवाना बने या बेगाना….कन्फ्युशन है! क्योंकि, बीते दिनों बिहार के मुखिया नीतीश कुमार दिल्ली में राष्ट्रीय विकास परिषद् की बैठक में जो बोले उसने भी कन्फ्यूश कर दिया. दरअसल, सुशासन बाबू ने यह कहा कि केंद्र सरकार आर.टी.ई., बीज व खाद्य सुरक्षा विधयेक, पात्रता विधेयक जैसे जो भी कानून बना रही है वह राज्यों के क्षमता को देखे बगैर बना रही है. जो कि संघीय ढांचे के खिलाफ है. बात तो सही है नीतीश जी ने जो कहा वह लाख टके की बात है. पर कन्फ्युशन इसलिए है कि नीतीश कुमार वैसे कानूनों का विरोध करने के बजाये उन्हें सूबे में फटाफट लागू करते जा रहे हैं. जबकि यह सत्य है कि बिहार अभी भी पिछड़ा राज्य है..जिसके लिए विशेष राज्य के दर्जे की मांग भी वे ही कर रहे हैं..और कानून पर कानून भी लागू कर रहे हैं. लिहाजा, पिस रही है आम जनता.
सो, मै इस सोच में पड़ गया हूँ कि सुशासन बाबू अब्दुल्ला दीवाना हैं या बेगाना!


- सौरभ के.स्वतंत्र


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रविवार, अक्तूबर 23, 2011

बिहार में सी-कम्पनी का फिर खौफ!





  • बढ़ते अपराध को ले पुलिस के बजाये मीडिया पर बरसते नीतीश!

  • फिर पनप रहा है अपरहण उद्योग!


सौरभ के.स्वतंत्र



सुशासन बाबू के नाम से विख्यात नीतीश कुमार के २००४ में सत्ता में आने के बाद बिहार को एक नयी उम्मीद की किरण दिखी. मसलन, अब बिहार से जंगल राज समाप्त हो रहा है..अपराध का ग्राफ गिर रहा है…वंचितों को न्याय मिल रहा है…इसी बेस पर सुशासन बाबू दूसरी पारी खेलने में सफल हुए..पर इन दिनों सूबे का आलम यह है कि सी-कम्पनी यानी कास्ट, क्राइम और करप्शन फिर सिर उठा रहा है..आये दिन हत्या, बलात्कार, भ्रष्टाचार के मामले सामने आ रहे हैं. मुख्यमंत्री सूबे के सारे एस.पी. और डी.आई.जी. की मैराथन बैठक कर रहे हैं..पर अपहरण, बलात्कार, हत्या के मामले थम नहीं रहे. मुख्यमंत्री पुलिस अधिकारियो की बैठक में किसी भी एस.पी. और डी.आई.जी को डांट पिलाने के बजाये मीडिया पर एकतरफा वार करते दिख रहे हैं. मुख्यमंत्री का मानना है कि मीडिया सिर्फ एकपक्षीय खबर दिखा रहा है..
इस लिहाज से यह कहना सर्वथा उचित होगा कि सरकार अवसरवादी हो गयी है. मेरी तो सरकार को यही राय है कि उसे यह मान लेना चाहिए कि नीतीश कुमार को जो लोकप्रियता व हाइप मिला है उसके पीछे मीडिया का ही हाथ है..अब जब सरकार नाकाम होती दिख रही तो भी मीडिया से ऐसी उम्मीद का भ्रम पाले रखना निहायत अलोकतांत्रिक है. सच तो सच है..पर्दा क्यों..?



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