सच हम नहीं, सच तुम नहीं, सच है महज संघर्ष ही!

शनिवार, नवंबर 17, 2012

छठ, छलावा और छठ!

लोक आस्था का पर्व छठ शुरू है..दीपावली बीत गयी..भले ही कई घर अँधेरे में रहे हो, कई महिलाएं अपने ग़ुरबत को कोसती रही हो..पर छठ ऐसा पर्व है इससे हर तबके के लोगों में ऐसी ताकत और जूनून आ जाती है कि उसे छठ व्रत करने से कोई रोक नहीं सकता.

बिहार की एक लोक गीत की बानगी :
बहिनी येसो के समय बड़ा बा महंगिया, छोड़ी देही अगे बहिनी छठी देई वरतिया…होई देहु महंगिया हो भइया, होई देहु ससतिया,

हमि न छोड़ब छठि देई वरतिया, हुनकर देहल हो भइया.

चाहे महंगाई हो या कोई विपदा, राजनीति हो या सरकारी तन्द्रा, छठ पर्व में ये अड़चन आने से रहे..फिलवक्त, बिहार में महंगाई अपने चरम पर है, घाट की दशा भी ख़राब है और बी.पी.एल. परिवारों को अनाज की आपूर्ति ही नहीं मिलती. लिहाजा, लोगों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है इसमें कोई शक नहीं. अनाज को ले डीलर सरकार पर और सरकार भारतीय खाद्य निगम पर दोषारोपण करती रहती है और इस आरोप-प्रत्यारोप के खेल में पिसती है आम जनता..मुझे लगता है कि केंद्र न सही पर राज्य सरकार को जाग जाना चाहिए और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को छठ व्रतियों की हरसंभव मदद करनी चाहिए. नीतीश जी को ये बताने की जरुरत नहीं कि उनपर भी छठ मैया का आशीर्वाद रहा है…अगर सरकार फिर भी सोयी रहती है तो बिहार की जो परंपरा रही है, छठ में एक दूसरों को सहायता करने की,वह किस दिन काम आएगी..