सच हम नहीं, सच तुम नहीं, सच है महज संघर्ष ही!

गुरुवार, अक्तूबर 29, 2009

पानी के प्रकार

जल। जीवन का एक अभिन्न हिस्सा। शरीर का हिस्सा। सृष्टि का हिस्सा। कृषि का हिस्सा। हर क्षेत्र में सहभागी। कुदरत ने क्या कमाल किया, जल बिना सब सून या ठेठ साहित्य में कह लें तो बिन पानी सब सून। दरअसल, मैं पानी के जगह जल इसलिए उपयोग कर रहा था कि पानी के दो अर्थ हैं। एक पानी हाया से मतलब रखता है तो दूसरे का सरोकार जीवन का अभिन्न हिस्सा वाले पानी से है। द्विअर्थी। कमाल की बात तो यह है कि इस वक्त किसी में शुद्धता नहीं है। बहुतेरे जगह तो पानी ही नहीं है। न आंख में न घाट पे। लिहाजा, इस किल्लत ने चाहुओर हड़बोंग मचा रखी है। लोग पानी के लिए आंख से पानी ही उतार दे रहे हैं। कोई आंख का पानी उतार, जीवनधारा वाले पानी को बेच रहा है तो कोई उसे अपनी जागीर बना आंखे तरेर रहा है। आंख में पानी ही नहीं है। सरकार भी अपने आंख का पानी शिक्हर पर रख पानी की तिजारत पर नोश नहीं फरमा रही। नतीजन, आम जनता त्रस्त है। पानी बेचने वाले बाबा मस्त हैं। अब तो वस्तुस्थिति ऐसी हो गई है कि सांडास के लिए भी पानी बेचे जाने की आशंका जतायी जा रही है। एसी वाले नेता जी को तो इससे कोई मतलब ही नहीं , वे तो वेस्टर्न प्रसाधन सिस्टम से अपना काम चला रहे हैं। पानी की कोई आवश्यकता ही नहीं। सो, दुख, दर्द, आफत इन सबसे नेताजी बचे हुए हैं। पर मैंगो पिपल या कह लिजीए आंख में पानी रखने वाली आम जनता तो पानी के किल्लत से परेशान है। आश्चर्य की बात तो यह है कि आंख में पानी है पर चौकाघर में पानी नहीं। औप्सन एक ही है। सो, अपील यही है मैंगो पिपल से कि आंख से पानी उतारकर नेताजी और पानी बेचने वाले बाबा को घसीट मारो, वरन पानी नसीब नहीं होने वाली।

- एस.के.स्वतंत्र

बुधवार, अक्तूबर 07, 2009

बच्चे


बच्चे वाकई होते हैं मन के सच्चे!

बस उन्हें समझने की दरकारहै।