पेट्रोल एक हज़ार रुपये प्रति लीटर, चीनी पांच सौ रुपये प्रति भर, दाल आठ सौ रुपये प्रति रत्ती , सब्जी सात सौ रुपये प्रति दस ग्राम, चावल तीन सौ रुपये प्रति तोला. यह तस्वीर हमारे आने वाले कल की है. दरअसल, इस तस्वीर के पीछे जो बैकग्राउंड है वह बढ़ती जनसँख्या का है. आज पूरे विश्व की आबादी सात अरब पहुँच गयी है और उसमे भारत का योगदान सवा अरब का है. सो,चिंता लाजिमी है. जगह यानी क्षेत्रफल निर्धारित है और उसी में अपनी जनसँख्या को भी सेटल करना है और अपने उत्पाद को भी मांग के हिसाब से बढ़ाना है. लिहाजा, जगह की मारामारी तो अभी से शुरू हो गयी है. अग़र हम अपने चश्मे का पावर और बढ़ा कर देखे तो आने वाले समय की तस्वीर स्पष्ट हो जायेगी. जल, जंगल और जमीन तीनों के लिए युद्ध होने के संकेत मिल रहे हैं. सड़क पर बढ़ते ट्रेफिक की बात की जाए तो सरकार को अब लोगो को शिफ्ट में चलने का मास्टर प्लान तैयार करना पड़ेगा इसमें कोई दो राय नहीं है. लोगों को शिफ्ट में सोना पड़े इसमें भी कोई शक नहीं है और उगते भारत में गिरते लिंग अनुपात के चलते महिलाओं के साथ छेड़खानी के मामले फ़्लू की तरह बढे तो कोई आश्चर्य न होगा. भारत की द्रुत गति से बढ़ती जनसँख्या पर सयुंक्त राष्ट्र संघ ने भी चिंता जताई है और भारत को आगाह भी किया है. यानी अलार्म बज चुका है.
सार्थक आलेख ..सच है सीमित संसाधन बढती जनसँख्या की ज़रूरतें कहाँ पूरी कर पायेंगें ..... विचारणीय विषय
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