शेष है/ सिर्फ़ मौन
चाहता है मन
तमाम अनुभवों को बांटना
करना तमाम बातें
मौसम की,
फूलों की,
हवाओं की
कुछ तुम्हारी
मेरी अपनी भी।
मगर/उन
गिने चुने पलों को
तौलती तुम्हारी बेरुखी में
मुखर होता है
सिर्फ़ मौन।
शायद कल मिले
अनुकूल शब्द और पल भी
दे सकूं अभिव्यक्ति
जब मैं अपनी भावनाओं को
इन्हीं सोच में डूबा मन
तय कर चुका होता है
एक और रात का सफर।
-सीमा स्वधा
nice
जवाब देंहटाएंwaah sundar
जवाब देंहटाएंbahut achchhi rachna
जवाब देंहटाएंhttp://sanjaykuamr.blogspot.com/
सौरभ अच्छा अच्छा है, लगे रहिये >.....
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