1905 में बंगाल विभाजन की घोषणा के बाद भारतीय अखबारों ने बंग-भंग का कड़ा विरोध करते हुए, इसे राष्ट्र हितों पर कुठाराघात बताया गया। अंबिका प्रसाद वाजपेयी का 1907 में नृसिंग अखबार में प्रकाशित लेख स्वराज की आवश्यकता को काफी सराहा गया। वहीं जब युगांतर ने पूर्ण स्वतंत्रता का नारा दिया और बड़ी निडरता से बम बनाने की विधि छापी तो अंग्रजों के पैर तले जमीन खिसक गयें। जिसका फलसफा यह हुआ कि युगांतर को उनके कोप का भाजन बनना पड़ा।1909 में जब युगांतर का अंतिम अंक निकला तो उसका नया मूल्य था:
" फिरंगी का कटा हुआ सर"
वहीं हिंदी प्रदीप को भी अंग्रेजों के दमन का शिकार होना पड़ा। दरअसल, प्रदीप में माधव शुक्ल की कविता जरा सोचो तो यारो ये बम क्या है? प्रकाशित हुई थी।इस दौर में केसरी पत्र का स्वर भी काफी तीव्र था। हिंदी केसरी के मुख्य पृष्ठ पर ये निर्भिक वाक्य होते थें-
सावधान! निश्चिंत होकर न विचरना, जब देश की जनता निंद से उठ जाएगी, तब तुम्हारी खैर नहीं।
1913 में गणेश शंकर विद्यार्थी ने कानपुर से साप्ताहिक अखबार प्रातप निकाला। तमाम क्रांतिकारी प्रताप के कार्यालय में जुटते थें और वहीं से उन्हें क्रांति की खुराक मिलती थी।1919 में दशरथ प्रसाद द्विवेदी ने गोरखपुर से स्वदेश पत्र निकाल उत्तर भारत में स्वाधिनता आंदोलन का परचम लहराया।1919 के बाद सैनिक, कर्मवीर, अभ्युदय, स्वतंत्र और आज राष्ट्रीय आंदोलन के क्रुर दमन के बावजूद मोर्चे पर डटे रहें। ब्रिटीश सरकार ने जब स्वतंत्र विचारों और समाचारों के प्रकाशन पर रोक लगा दी थी तब विष्णु पराड़कर जी ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर रणभेरी अखबार निकाला। उस समय रणभेरी और आज दोनों के प्रेस पर फिरंगियों ने ताला जड़ दिया ।फिर पराड़कर जी ने रणभेरी गुप्त रूप से निकलना शुरू किया। एक पैसे के इस अखबार में
संपादक का :नाम सीताराम और
प्रकाशक का :नाम पुलिस सुप्रीटेंडेंट, कोतवाली, बनारस छपा।
पुलिस रणभेरी के प्रेस का पता लगाने में नाकामयाब हुई। रणभेरी की एक टिप्पणीः
"ऐसा कोई शहर नहीं जहां से रणभेरी जैसा पर्चा न निकलता हो। अकेले बंबई में इस समय ऐसे एक दर्जन पर्चे निकल रहे हैं। दमन से द्रोह बढ़ता है, इसका यह अच्छा सबूत है, पर नौकरशाही के गोबर भरे गंदे दिमाग में इतनी समझ कहां? वह तो शासन का एक ही अस्त्र जानती है- बंदूक।"
विदेश में रहने वाले क्रांतिकारियों ने भी कई अखबार निकालें, जिनमें गदर एक था। वास्तव में गदर-गदर पार्टी का पत्र था, जो कनाडा और अमेरिका में बसे भारतीयों का आवाज बना। इसके पहले अंक में एक प्रश्नोत्तरी छपी--
-आपका नाम क्या है?
गदर
-आपका काम क्या है?
गदर
- गदर कहां होगा?
हिंदुस्तान में।
- गदर क्यों होगा?
क्योंकि अब लोग ब्रिटीश सरकार के अत्याचार को और सहन नहीं कर सकते हैं।
वाकई हिंदी पत्रकारिता ने स्वतंत्रता संग्राम में जो अपना अमूल्य एवं साहसिक योगदान दिया वह उल्लेखनीय है। ऐसी साहसिक पत्रकारिता को मेरा सलाम।
बहुत दिलेर थे ये पत्रकार। लेकिन हमारे 'जवाहर छाप' नेताओं ने इनके किये कराये पर पानी फेर दिया।
जवाब देंहटाएंakbar waqy me ek bahut badi bhumika nibhate he
जवाब देंहटाएंबेहतरीन जानकारी.
जवाब देंहटाएंइस ओजपूर्ण पोस्ट के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएं--------
करे कोई, भरे कोई?
हाजिर है एकदम हलवा पहेली।
काश आज का मीडिया भी इस से कुछ सीख लेता
जवाब देंहटाएंतथाकथित सेलिब्रिटीज़ के जीवन में ताक झाँक से फुर्सत मिले तब न !