सारा घर
खिड़की तक लटक आये जाले
कोनों में जमी धूल
सीलन भरे बक्से को
धूप तक दिखा आयी
मगर खोला नहीं
बहुत दिनों से
कोने वाली बंद आलमारी
दरअसल
वो जुटाती रही हौसला
सामना करने का/अतीत का
जिंदगी के सफे से गायब
उन पन्नों में लिखी इबारत का
उस बन्द आलमारी में
कैद है
कितने सपने/ कितनी ख्वाहिशे
अधूरी सी
बोतल में बंद जीन की तरह
यकायक
जाने क्या हाथ आया
तमाम उथल-पुथल मचा गया
बह चला सैलाब भी
आंखों की कोरों को तोड़कर
हां
उसकी हाथों में थी
बीते वर्षों की डायरी।
- सीमा स्वधा
आईये जानें .... मन क्या है!
जवाब देंहटाएंआचार्य जी
सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंओह!!
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना!