बात विदिशा की है। बात मध्य प्रदेश की है। बात भारत की भी है। बात हमारी संस्कृति की भी है। बात मानवता की भी है। बात पापियों की भी है। बात गुरु-शिष्य सम्बन्ध की है। पीड़ा हीं पीडा है। सभी भोगे जा रहे हैं। अब इसे क्या कहे! जब गुरु हीं बच्चियों को भोगने का प्रयास करता हो। पांचवी कक्षा की बच्चियों को। न शर्म-न हाया। यह सोच कर मन में करंट प्रवाहित हो जाता है। ऐसी घटना / पाश्विक प्रवृति को सुनाने के बाद उस गुरु को बीच चौराहे पर लटकाने का मन करता है। मध्यप्रदेश के विलुप्तप्राय सहरिया अनुसूचित जनजाति की पांचवी कक्षा की आठ छात्राओं की वर्दी का नाप लेने के नाम पर उनके कपड़े उतरवा जाने के बाद कहना न होगा की बच्चियां अब स्कूल में भी सुरक्षित नही हैं। गुरु जिसे भगवान् का दर्जा दिया जाता है उनसे हमारी बच्चियों को खतरा है। गुरुजी के द्वारा दो-दो कर आठ सहरिया आदिवासी छात्राओं को बंद कमरे में बुलाना और उनके ऊपरी वस्त्र उतरवाकर इंच टेप के बिना वर्दी का नाप लेना क्या जाहिर करता है ? वाकई एक बार फिर मानवता शर्मशार हुई। एक बार फिर हमारे सभ्य होने पर प्रश्न चिह्न लग गया। गुरु-शिष्य सम्बन्ध में दरार आ गया। निश्चित हीं ऐसे पापिष्टि गुरु को बीच चौराहे पर लटका देना चाहिए...ताकि फिर कोई ऐसा करने से पहले एक हज़ार बार सोचे। पटना, सीतामढी और विदिशा की घटना के बाद धूमिल की ये पंक्तियाँ याद आती हैं:
"औरत : आँचल है,
जैसा कि लोग कहते हैं - स्नेह है,
किन्तु मुझे लगता है-
इन दोनों से बढ़कर
औरत एक देह है।"
"औरत : आँचल है,
जैसा कि लोग कहते हैं - स्नेह है,
किन्तु मुझे लगता है-
इन दोनों से बढ़कर
औरत एक देह है।"
- सौरभ.के.स्वतंत्र
kya bolu bhayi, sarmsar kar dene vali ghatna h....gali ke siva kuchh aur nhi nikalta h muh se...
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