सच हम नहीं, सच तुम नहीं, सच है महज संघर्ष ही!

सोमवार, जुलाई 27, 2009

स्त्री

स्त्री हूं मैं
इसीलिये शापित होना भी
मेरी ही नियति है,
एक बार फिर
मूर्तिमान हो डटी है
अहिल्या मुझमें
अपनी तमाम वंचनाओं सहित
और तुम तो
निस्पृह गौतम हीं बने रहे,
उपेक्षा और अपमान की
प्रतीक वह
तिरस्कृत शिला
जाने कब तक
प्रतीक्षा करती रही
जो राम का,
पर मुझे इंतजार नहीं
किसी राम का
तुम्हीं तो हो
मेरे अभिशाप भी/
उद्धार भी।

- सीमा स्वधा

4 टिप्‍पणियां:

  1. पर मुझे इंतजार नहीं
    किसी राम का
    तुम्हीं तो हो
    मेरे अभिशाप भी/
    उद्धार भी।

    बहुत खूब सीमा जी। सफलतापूर्वक अपनी बात आपने कह दिया। वाह।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  2. अनिल जी और सुमन जी, उसका सच एक प्रयास भर है.. अनकहे सच की अभिव्यक्ति का...देखना है कि हम कहाँ तक खरे उतरते हैं.

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