स्त्री हूं मैं
इसीलिये शापित होना भी
मेरी ही नियति है,
एक बार फिर
मूर्तिमान हो डटी है
अहिल्या मुझमें
अपनी तमाम वंचनाओं सहित
और तुम तो
निस्पृह गौतम हीं बने रहे,
उपेक्षा और अपमान की
प्रतीक वह
तिरस्कृत शिला
जाने कब तक
प्रतीक्षा करती रही
जो राम का,
पर मुझे इंतजार नहीं
किसी राम का
तुम्हीं तो हो
मेरे अभिशाप भी/
उद्धार भी।
- सीमा स्वधा
आपकी रचना बहुत कुछ कह जाती है
जवाब देंहटाएंमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
पर मुझे इंतजार नहीं
जवाब देंहटाएंकिसी राम का
तुम्हीं तो हो
मेरे अभिशाप भी/
उद्धार भी।
बहुत खूब सीमा जी। सफलतापूर्वक अपनी बात आपने कह दिया। वाह।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
अनिल जी और सुमन जी, उसका सच एक प्रयास भर है.. अनकहे सच की अभिव्यक्ति का...देखना है कि हम कहाँ तक खरे उतरते हैं.
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar bhaw liye huye hai aapki kawita ......bahut hi sundar
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