बिहार की राजनीति में धुंआ उठता नजर आ रहा है...यह कभी भी आग में तब्दील हो सकता है. दरअसल, जदयू और भाजपा में जो तल्खी महसूस की जा रही है उसके अच्छे संकेत नहीं मिल रहे हैं. मुख्यमंत्री का भाजपा प्रदेश अध्यक्ष को मीडिया के जरिये जवाब देना गठबंधन धर्म की तिलांजलि देने जैसा लगता है. दरअसल, बीते दिनों भाजपा नेता संजय झा के जदयू में शामिल होने पर प्रदेश भाजपाध्यक्ष डा.सीपी ठाकुर ने कहा था-'जदयू के कुछ नेता भी भाजपा में आने को तैयार हैं। मगर हम गठबंधन धर्म का ख्याल करते हुए उनको लिफ्ट नहीं दे रहे हैं।' सो, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने डा.ठाकुर की इस बात का जवाब कुछ ऐसे दिया- 'अगर हमारी पार्टी से कोई जाना चाहे तो डाक्टर साहब (डा.सीपी ठाकुर) उसे ले जा सकते हैं। हमें कोई दिक्कत नहीं है।'
अब सवाल यह उठता है कि क्या ऐसे आपसी मतभेद पर गठबंधन टिकी रह सकती है! क्या इस तरह की बातों से जनता अपने आप को ठगी महसूस नहीं कर रही है! क्योंकि, जनता ने न तो जदयू को सिर्फ चुना है और न ही सिर्फ भाजपा को. जनता ने एन डी ए की सरकार को ताज सौपा है. अगर उन्ही कर्णधारों में आपसी मतभेद और रंजीश के धुएं परिलक्षित होने शुरू हो जाए तो जनता के पास विकल्प क्या होगा?
Bebak kaha sir aapne. Bahut dino baad blog par. Thanx
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