शिक्षा के क्षेत्र में पैदल रहा बिहार अब तक तक़रीबन पचास से साठ हज़ार निजी विद्यालयों पर आश्रित है. आई.ए.एस. और आई.पी.एस. के उत्पादक बिहार में लगभग साठ लाख बच्चे अपना पठन-पाठन निजी विद्यालयों से करते आ रहे हैं. तब जाकर पैदल बिहार की कमर कुछ हद तक सुरक्षित है. देश में आर.टी.ई. के लागू होने के बाद बिहार का मानव संसाधन विभाग जिस तरीके से निजी विद्यालयों की स्वायत्तता पर अंकुश लगाने की तैयारी कर रही उस लिहाज से बिहार में शिक्षा की गुणवत्ता का और बंटाधार होने जा रहा है इसमें कोई शक नहीं. पच्चीस प्रतिशत गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा देना तो आर.टी.ई. का अच्छा प्रावधान है पर निजी विद्यालयों के प्रबंधन समिति में बाहरी घुसपैठ बरास्ता सरकार निहायत चिंतनीय है. निजी विद्यालय कालांतर में आपसी प्रतिस्पर्धा से शिक्षा की गुणवत्ता को बनाये रखने का प्रयास करते दीखते रहें. अब जब सरकार विद्यालय प्रबंधन समिति में कुछ गवई और सरकारी लोगों को लाने के लिए विद्यालयों को प्रस्वीकृति कराने का दबाव डाल रही है तो इन साठ हज़ार विद्यालयों का भविष्य सरकारी विद्यालयों से भी ज्यादा अंधकारमय दिख रहा है. इस लिहाज से निजी विद्यालयों के लगभग साठ हज़ार संचालको , पचास से साठ लाखबच्चों तथा उनके अभिभावकों का सड़क पर उतरना स्वाभाविक है..!
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