सच हम नहीं, सच तुम नहीं, सच है महज संघर्ष ही!

शुक्रवार, मई 21, 2010

लड़की और सपने

- सीमा स्वधा

मत निहार/ऐ लड़की
उन्मुक्त क्षितिज को,
इस पार से उस पार तक
जो स्वप्निल फैलाव है
मत बाँध/ख़ुद को
उन्मुक्तता के आकर्षण में
कि/ क़तर दिए जायेंगे
तेरे पर/ गर तू
चिडिया होना चाहती है
और / बंद कर दिए जायेंगे
हर सुराख़/ गर तू
हवा होना चाहती है।अल्हड उम्र है तेरी/ ठीक है
देख सपने/ जितना जी चाहे
पर/ मत भूल
कि जन्मी है तू
एक पर्म्पराबध घर की चार दीवारी में
कि / कैद कर दिया जायेगा
रौशनी का हर कतरा
गर तू/दीया होना चाहती है
और पट दिया जाएगा
आसमान/ गर तू
धूप होना चाहती है।
इसलिए / गर तुझे होना है
चिडिया /धूप / हवा/ रौशनी
रोप अपने मन में
आत्म शक्ति का बीज
अंकुरने दे/ स्वाभिमान का पौधा
और भर पांवों में/ संघर्ष की शक्ति
कि आयेंगे जाने कितने अंधड़
परम्पराओं के/ आभावों के
वरना / नाकाम जिंदगी की
अगली कड़ी भी तुझे ही होना है
एक कुंठित और मुखर औरत...!

4 टिप्‍पणियां:

  1. लड़की और...न जाने क्या..क्या...फिलहाल सपने.

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  2. चन्दन जी लड़की होकर देखिये...फिर आप सपनो में भी तारे गिनते नज़र आयेंगे..प्रतिक्रियावादी लगते हैं.

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  3. रोप अपने मन में
    आत्म शक्ति का बीज
    अंकुरने दे/ स्वाभिमान का पौधा

    wah kya kalpna hai.sadhuvad.

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