एक पत्रकार नागपुर में रहते हैं और एक बिहार में.. नागपुर में रहने वाले पत्रकार महोदय एस.एन.विनोद हैं वही बिहार में रहने वाले पत्रकार सुरेन्द्र किशोर जी हैं...एस.एन.विनोद की माने तो बिहार में कोई विकास या काम नहीं हो रहा (क्योंकि उनके किसी मित्र ने उन्हें फ़ोन पर बताया है)...वे इसी आधार पर बिहार के पत्रकारों पर आरोप लगा कर कहते हैं कि बिहार के पत्रकार बिके हुए है..जो पैसो के बल पर विकास का भ्रम मात्र पैदा कर रहे हैं...विनोद जी ने अपने ब्लॉग चीर फाड़ पर पत्रकारों को गरियाने के लिए लालू प्रसाद का हवाला भी दिया है.
वही हमेशा से मुख्यमंत्रियों की आलोचना करते रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर जी की माने तो बिहार में वाकई काम हो रहा है और उन्हें कोई सरकारी परसादी लेनी होती तो नीतीश कुमार के शासन आने की प्रतीक्षा क्यों करते.. ?
अब सवाल यह उठता है कि क्या वाकई नीतीश ने पत्रकारिता का उपयोग करके विकास का भ्रम पैदा कर रखा है या एस.एन.विनोद (नागपुर) और बिहार के बीच फासला और एक संपादक मित्र के फ़ोन कॉल ने नीतीश के सारे विकास कार्यो पर पर्दा दाल दिया है..
पहले पढ़ते हैं एस.एन.विनोद का आलेख उन्ही के ब्लॉग चीर फाड़ से...
नीतीश का बिहार, नीतीश के पत्रकार!
अब इस विडंबना पर हंसूं या रोऊं? एक समय था जब पत्रकार राजनेताओं अर्थात्ï पॉलिटिशियन्स को भ्रष्ट, चोर, दलाल निरूपित किया करते थे। वैसे करते तो आज भी हैं, किंतु अब राजनेता पत्रकारों को भ्रष्ट, चोर, दलाल, निरूपित करने लगे हैं। क्यों और कैसे पैदा हुई ऐसी स्थिति? तथ्य बतात हैं कि स्वयं पत्रकार ऐसे अवसर उपलब्ध करवा रहे हैं। इस संदर्भ में बिहार से कुछ विस्फोटक जानकारियां प्राप्त हुईं। प्रचार तंत्रों को दागदार-कलंकित-पिछड़े बिहार की जगह स्वच्छ, समृद्ध और विकासशील बिहार दिख रहा है! बिहार से बाहर रहने वाले बिहारीजन प्रदेश की इस नई छवि से स्वाभाविक रूप से पुलकित हैं। किंतु परदे के पीछे का सच पत्रकार बिरादरी के लिए भयावह है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कार्यकाल के लगभग साढ़े चार वर्ष पूर्ण हो चुके हैं। इस अवधि में बिहार के अखबार, वहां कार्यरत पत्रकार और विभिन्न टीवी चैनल नीतीश कुमार और बिहार का ऐसा चेहरा प्रस्तुत करते रहे मानो बिहार विकास के पायदान पर निरंतर छलांगें लगाता जा रहा है! जबकि साक्ष्य मौजूद हैं कि इसके पूर्व यही पत्रकार बिरादरी अन्य मुख्यमंत्रियों और बिहार को पिछड़ा, निकम्मा और एक अपराधी राज्य निरूपित करती रही थी। फिर अचानक क्या हो गया? क्या सचमुच नीतीश कुमार ने बिहार की तस्वीर बदल डाली है? बिहार अपराध मुक्त और बिहारी भयमुक्त हो चुके हैं? अब जातीय संघर्ष से दूर बिहार एक विकसित प्रदेश का दर्जा प्राप्त करने की ओर अग्रसर है? इस जिज्ञासा का जवाब लगभग 15 वर्ष पूर्व संपादक के पद से अवकाश प्राप्त कर चुके एक वरिष्ठ पत्रकार ने विगत कल सुबह दिया। जवाब से मैं स्तब्ध रह गया! उन्होंने कहा कि, ''नीतीश कुमार का बिहार विकास के लिए नहीं अपितु पत्रकारों के विनाश के लिए जाना जाएगा।'' नीतीश कुमार ने अपने कार्यकाल में अखबारों, चैनलों और पत्रकारों का मुंह बंद रखने के लिए अपनी ओर से कोई कसर नहीं छोड़ी है। बिल्कुल बंधुआ मजदूर बना रखा है उन्हें। नीतीश और बिहार का गुणगान करने पर बिरादरी खुश है- सुखी है। आरोप है कि वे सबकुछ कर रहे हैं सिवाय पत्रकारीय ईमानदारी के। कोई आश्चर्य नहीं कि इस तथ्य पर परदा डाल दिया गया है कि बिहारवासी नीतीश कुमार से क्रोधित हैं और अगले विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी (जदयू) की खटिया खड़ी होने वाली है।कहते हैं यदाकदा जिन पत्रकारों ने सच को उजागर करने की कोशिश की, या तो उनका तबादला हो गया या तो फिर प्रबंधन की ओर से उन्हें शांत कर दिया गया। अखबारों, चैनलों को विज्ञापन के अलावा निजी तौर पर पत्रकारों को खुश रखने के लिए धन पानी की तरह बहाया गया। लेकिन कैसे? एक वरिष्ठ पत्रकार मित्र की जुबान में सुन लें- ''....पांच लाख का विज्ञापन तो दिया जाता है किंतु साथ में पांच जूतों का बोनस भी।'' और तुर्रा यह कि पत्रकार खुशी-खुशी सह रहे हैं, स्वीकार कर रहे हैं।बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालूप्रसाद यादव ने बिहार के विकास के मुद्दे पर पत्रकारों को चुनौती दी है। लेकिन उनकी चुनौती को कोई स्वीकार नहीं कर रहा है। कारण स्पष्ट है। बंद मुंह खोलें तो कैसे? लालू ने एक वरिष्ठ पत्रकार के नवनिर्मित बंगले पर निर्माण खर्च का ब्यौरा सार्वजनिक रूप से मांगा है। स्वीमिंग पुल की सुविधायुक्त बंगला उस पत्रकार की माली हैसियत के दायरे में तो नहीं ही आता है। इसी प्रकार एक दैनिक में छपी उस रिपोर्ट को लालू ने चुनौती दी है जिसमें छोटे से शहर की एक लड़की को बिहार की कथित उपलब्धियों पर गर्व करते प्रस्तुत किया गया था। लालू ने चुनौती दी है कि संपादक उक्त लड़की को प्रस्तुत करें। लालू के अनुसार पूरी की पूरी यह 'स्टोरी' कपोलकल्पित है और लड़की एक काल्पनिक पात्र! उसका कोई वजूद ही नहीं है। अगर लालू का आरोप सही है तो निश्चय ही वह अखबार और संपादक नीतीश कुमार की दलाली कर रहा है। अविश्वसनीय तो लगता है जब सुनता हंू कि नीतीश कुमार सरकारी खजाने से सैकड़ों करोड़ रुपये समाचारपत्रों, टी.वी. चैनलों और पत्रकारों को उपकृत करने के लिए खर्च कर चुके हैं। क्या इस आरोप की जांच के लिए कभी कोई पहल होगी? उपकृत पत्रकार तो नहीं ही करेंगे, लेकिन अपवाद की श्रेणी में मौजूद ईमानदार पवित्र हाथ तो पहल कर ही सकते हैं।
अब पढ़ते हैं सुरेन्द्र किशोर जी की नीतीश कुमार और बिहार की पत्राकारिता पर राय.
कोई सरकारी परसादी लेनी होती तो नीतीश कुमार का शासन आने की प्रतीक्षा क्यों करता ?
प्रश्न - आपके बारे में यह कहा जाता है कि अपने पत्रकारिता जीवन में आपने कभी किसी मुख्यमंत्री की तारीफ नहीं की । क्या कारण है कि आप इन दिनों नीतीश कुमार के प्रशंसक बने हुए हैं ? इस अति प्रशंसा के कारण आपकी पुरानी छवि को धक्का लग रहा है?
उत्तर - आपने बिलकुल सही कहा। कुछ लोग तो नेट पर यह भी लिख रहे हैं कि मैं किसी तरह की ‘परसादी’ पाने के लिए नीतीश कुमार की चापलूसी कर रहा हूं। दरअसल ऐसे लोग न तो मुझे जानते हैं और न ही बिहार व देश के सामने आज जो गंभीर समस्याएं हैं, उनका उन्हें कोई अनुमान है। यदि किसी को अनुमान है भी तो वे स्वार्थ या किसी अन्य कारणवश उन्हें देख नहीं पा रहे हैं।यह बात सही नहीं है कि मैंने किसी मुख्यमंत्री की अपने लेखन में आम तौर पर कभी कोई सराहना ही नहीं की। जिस नेता के बारे में मुझे सबसे अधिक लिखने का मौका मिला, वे हैं लालू प्रसाद यादव। उन्होंने भी अपना काम किया और मेरे खिलाफ कुछ ऐसे कदम उठाए जो अभूतपूर्व रहे। इसके बावजूद 1990 में मंडल आरक्षण आंदोलन के दौरान मैंने लालू प्रसाद के पक्ष में और आरक्षण विरोधियों के खिलाफ लगातार जोरदार लेखन किया।इस लेखन के कारण मुझे अपने स्वजातीय, सवर्णों और यहां तक कि अपने परिजनों से भी आलोचनाएं सुननी पड़ी थीं। अनेक मुख्यमंत्रियों को देखने के बाद मैं यह कह सकता हूं कि नीतीश कुमार जैसा मुख्यमंत्री कुल मिलाकर इससे पहले मैंेने तो नहीं देखा। यदि यह बात मैं किसी लाभ की प्राप्ति के लिए कहूं तो मेरी इस बात पर किसी को ध्यान देने की जरूरत नहीं है। पर यदि राज्यहित में कह रहा हूं तो मेरी बात सुनी जानी चाहिए अन्यथा बाद में राज्य का नुकसान होगा। मंडल आरक्षण विवाद के समय मेरी बातें नहीं सुनी गईं जिसका नुकसान खुद उनको अधिक हुआ जो आरक्षण के खिलाफ आंदोलनरत थे। बाद में वे थान हार गये, पर पहले वे गज फाड़ने को तैयार नहीं थे। यदि 1990 में बिहार में आरक्षण का उस तरह अतार्किक विरोध नहीं हुआ होता तो लालू प्रसाद का दल 15 साल तक सत्ता में नहीं बना रहता। कांग्रेस के पूर्व विधायक हरखू झा अब भी यह कहते हैं कि ‘सुरेंद्र जी तब आरक्षण विरोधियों से कहा करते थे कि गज नहीं फाड़ोगे तो थान हारना पड़ेगा।’
प्रश्न - आपका लेखन इन दिनों नीतीश सरकार के पक्ष में एकतरफा लगता है। यह किसी पत्रकार के लिए अच्छा नहीं माना जाता। इस पर आपकी क्या राय है ? क्या नीतीश जी सारे काम ठीक ही कर रहे हैं ?
उत्तर - इस आरोप को एक हद तक में स्वीकरता हूं। हालांकि यह पूरी तरह सच नहीं है। नीतीश कुमार की सरकार की कुछ गलत नीतियों की मैंेने लिखकर समय-समय पर आलोचना की है। आगे भी यह स्वतंत्रता मैं अपने पास रिजर्व रखता हूं क्योंकि न तो मैंने खुद को कभी किसी के यहां गिरवी रखा है और न ही ऐसा कोई इरादा है। जब जीवन के कष्टपूर्ण क्षण मैंेने काट लिए तो अब किसी से किसी तरह के समझौते की जरूरत ही कहां है?यदि मैं किसी लाभ या लोभ के चक्कर में किसी सरकार या नेता का विरोध या समर्थन करूं तो जरूर मेरे नाम पर थूक दीजिएगा। पर यदि देश और प्रदेश के व्यापक हित में ऐसा करता हूं तो उसे उसी संदर्भ में देखनेे की जरूरत है।मैं पूछता हूं कि आजादी की लड़ाई के दिनों में क्या भारतीय पत्रकारों से यह सवाल पूछा जाता था कि आप आजादी की लड़ाई के पक्ष में एकतरफा क्यों हैं ? आज देश व प्रदेश में उससे मिलती-जुलती स्थिति है।खतरे उससे कई मामलों में अधिक गंभीर हैं। खतरा लोकतांत्रिक व्यवस्था की समाप्ति का है। खतरा अलोकतांत्रिक अतिवाद व आतंकवाद के काबिज हो जाने का है। इन दोनों खतरों को हमारे देश व प्रदेश के कुछ खास नेतागण अपने स्वार्थ में अंधा होकर जाने अनजाने आमंत्रित कर रहे हैं। इस स्थिति में जो नेता सुशासन लाने की कोशिश कर रहा है, जो नेता भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़े कदम उठाना चाहता है और भरसक उठा भी रहा है। और जो नेता सांप्रदायिक मसलों पर संतुलित रवैया अपनाता है, वही इन खतरों से सफलतापूर्वक लड़ भी सकता है। वैसे नेताओं के प्रति पक्षधरता दिखाना ही आज देशहित व राज्यहित है। लोकतंत्र बना रहेगा तभी तो स्वतंत्र प्रेस भी रहेगा।
सुरेन्द्र जी से पूरी बातचीत के लिए इस लिंक पर जाएँ..
पत्रकारिता के 40 साल पूरे कर चुके वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर से ‘ ‘प्रभात खबर ’ की बातचीत
अब फैसला आप सभी को सुनाना है..क्या बिहार के पत्रकार वाकई बिक गए हैं...क्या नीतीश ने बिहार में विकास नहीं किया...क्या बिहार की छवि उभरी नहीं है?
नागपुर में रहकर राज ठाकरे की बोली बोलने लगे हैं
जवाब देंहटाएंI agree with Vinod ji.
जवाब देंहटाएंरविश जी सवाल राज ठाकरे की बोली का नहीं..सवाल पत्रकारों की अस्मिता का है..मुझे मालूम है कि विनोद जी का जुड़ाव भी बिहार के पत्रकारिता से था..लेकिन एक मित्र के कहने पर पूरे समुदाय पर आक्षेप लगाना तर्कसंगत नहीं लगता
जवाब देंहटाएंप्रवीण जी आप अपने इस सहमती पर कोई तर्क देंगे?
जवाब देंहटाएंबात दरअसल यह भी है कि लोग यह स्वीकार ही नहीं करना चाहते कि कि बिहार भी तरक्की के रास्ते पर आगे बढ़ सकता है।
जवाब देंहटाएंबिहार की छवि तो सुधरी है लेकिन छवि सुधारने की जो रफ्तार रही है,उसके आधार पर इतना तो कहा जा सकता है कि हम-आप बिहार को अपने जीते-जी विकसित नहीं देख पाएंगे। इन पांच वर्षों में नीतीश ने कितने उद्योग लगाए? पिछले वर्ष पटना प्रवास के दौरान मैंने नीतीश जी का एक बयान देखा। गुहार लगा रहे थे कि कोई साइकिल कंपनी पटना के आसपास फैक्ट्री खोले,तो सरकार रियायती दर पर सुविधाएं उपलब्ध कराएगी और कंपनी को बिक्री की भी चिंता नहीं करनी क्योंकि सरकार खुद सारा साइकिल खरीदेगी। पता नहीं कोई कंपनी इतने पर भी बिहार गई या नहीं। लोगों का पेट उद्योग से भरेगा या छवि मैनेजमेंट से?
जवाब देंहटाएंall allegation against Nitish kumar is rubbish. if you are against the Nitish , you are agaisnt Bihar progress & Devlopment.Nitish Kumar has changed the bihar in real, you go to Bihar, you will notice a concrete change in Bihar. Road, School, Hospital all are in good shape. the Nitish Govt only failure of not giving electricity to Bihar, this is only becouse the fifteen year of Mal -government by Lalu Yadav. lalu has spoiled the Bihar, in his fifteen year of raj , there is No new Power Plant established in the state.
जवाब देंहटाएंLalu is a corrupt poltician. he and his family members had looted bihar and made it a BIMARU state.in his 15 years tenure he had prospered a lot bur Bihar lagged and become a failed state.
if any person from Bihar, supports Lalu Yadav is a Big Fool. lalu will galloped the whole Bihar if given another chance.we must keep him out of power for the sake of Bihar
नागपुर में बैठे-बैठे अपने किसी दोस्त की बात को मानकर बिहार के बारे में कोई छवि बना लेना मेरे हिसाब से सही नहीं है। विनोद जी के जिस मित्र का एक वरिष्ठ पत्रकार होना वो बता रहे हैं, उनकी बात की सच्चाई का प्रमाण क्या है? पत्रकारिता के जिस समाज को विनोद जी और उनके तथाकथित वरिष्ठ पत्रकार मित्र बिका हुआ और झूठा बता रहे हैं, वो शायद ये भूल गए हैं कि वो खुद भी उसी समाज से आते हैं। विनोद जी और उनके मित्र ने बिहारी पत्रकारों को नितीश कुमार के हाथों बिका हुआ बता दिया और हम विश्वास कर लेते हैं। मैं विनोद जी और उनके मित्र को लालू यादव के हाथों बिका हुआ बताता हूँ, क्या आप मेरा विश्वास करेंगे? आप करें या न करें, इसका फैसला इस टिप्पणी को पढ़कर या मुझसे फ़ोन पर बात करके नही लिया जा सकता। हकीकत देखनी है तो आइये बिहार और देखिये। 5 साल पहले का बिहार और आज के बिहार में अंतर है। मैं पटना का हूँ और अभी अभी मैं रात के 1 बजे , 35 किलोमीटर की दूरी तय करके घर आ रहा हूँ। इस दूरी को तय करने में मुझे डेढ़ घंटे लगे। 5 साल पहले भी डेढ़ घंटे ही लगते थे मगर कारण अलग था। पहले सड़क में गड्ढे ही गड्ढे थे जिसके कारण गाड़ी रफ़्तार नहीं पकड़ती थी। आज सड़क पर रात के 1 बजे भी ट्रैफिक रहता है जिसके कारण गाड़ी रफ़्तार नहीं पकड़ पाती। क़ानून व्यवस्था में सुधार की इससे बड़ी मिसाल शायद आपको कहीं और न मिले।
जवाब देंहटाएंकिसी मित्र के बारे में झूठी अफवाह फैलाता हूँ मित्रों के बीच में कि उसकी शादी होने वाली है तो दो दिन के बाद मुझे ही कुछ और मित्र लड़की का नाम-गाँव इत्यादि भी बता देते हैं। बात निकलती है तो सच में दूर तलक जाती है। मेरी कही बातों में मिर्च-मसाले लगाकर दो दिन के बाद मुझे ही सनसनीखेज खबर के रूप में बताया जाता है। ये है हकीकत इंसानी मानसिकता की। मैं किसी को कुछ बोलूँगा वो उसी बात को किसी और से कुछ बोलेगा और आप तक पहुँचते-पहुँचते राम श्याम बन जाता है। विनोद जी से एक आग्रह है कि किसी से सुनी बात पर इतनी बड़ी छवि बना लेने से पहले तथ्यों को थोडा परख लें। आइये बिहार, देखिये इसे। 15 साल से गर्त में जा रहे बिहार को आज ज़मीन पर आते हुए देखिये। नितीश अगले 5 सालों के लिए आयेंगे या नहीं मालूम नहीं, मगर इतना जरूर है कि हर पढ़ा-लिखा बिहारी यही चाहता है। ये सच्चाई है। मैं पत्रकार नहीं, इसलिए इसे बिहारी पत्रकारों की सफाई मत समझिएगा। मैं डॉक्टर हूँ, आम नागरिक हूँ बिहार का और लिख भी रहा हूँ इसी हैसियत से। कम से कम किसी बिहारी का दिल न दुखाइए!!!
शिक्षा मित्र जी,
जवाब देंहटाएंआपसे मै एक प्रश्न करना चाहूँगा..आपको चोट लगती है तो आपके घाव भरने में कितने समय लगते हैं? 15 दिन 20 दिन . और आपको चोट लगने में कितना समय लगता है ..एक सेकंड -1 मिनट . अब मै पूछना चाहूँगा कि जो चोट बिहार को 15 साल में लगा है उसके घाव को भरने में कितना समय लगेगा...?
Bihar kabhi sudhar hi nahi sakta,mai S.N.Vinod ke baaton se sahmat hu, Nitish kumar ki khatiya Khadi hogi
जवाब देंहटाएंबिहार सुधर गया है..इसमें कोई शक नहीं!
जवाब देंहटाएंचेतना जी की बात से सहमती
जवाब देंहटाएंAise hi bahas ki jarurat hai
जवाब देंहटाएंSaurabh ji,
जवाब देंहटाएंBihar ki kya halat hai hum sabhi jaante hain. Tark ki koi baat hi nahi hai.
प्रवीण जी मै इतना ही कहूँगा कि बिहार के हालात के बारे में जानना है तो ऊपर आशु जी का कमेन्ट पढ़ लीजिये..तर्कसंगत कमेन्ट..फिर मुझसे बात कीजिये.
जवाब देंहटाएं''....पांच लाख का विज्ञापन तो दिया जाता है किंतु साथ में पांच जूतों का बोनस भी।''
जवाब देंहटाएंIska kya jawab dijiyega Saurabh ji?
तो प्रवीण जी आप भी एस.एन.विनोद के वरिष्ठ मित्र की तरह बात करने लगे हैं..तर्क दीजिये..कहाँ जूते मिल रहे हैं?
जवाब देंहटाएंप्रवीण जी,
जवाब देंहटाएंआप किसकी बात मान रहे हैं? किसने कहाँ की 5 लाख के विज्ञापन के साथ 5 जोड़े जूते भी दिए जाते हैं? ये उस आदमी का कथन है जिसका नाम तक हमें नहीं बताया गया है। उसकी प्रमाणिकता पर मुझे शक है। मुझे तो लगता है वो खुद लालू के जूते चाटने वालों में से हैं जिन्हें नितीश कुमार की कामयाबी बर्दाश्त नहीं हो रही। आप कहते हैं की बिहार की हालत आप जानते हैं। आप कुछ नहीं जानते। सिर्फ एक बात जानिये। विकास दर में भारत में गुजरात के बाद कोई राज्य है तो वो बिहार है। ये मैं नहीं कह रहा, बिहारी पत्रकार भी नहीं कह रहे। ये भारत सरकार की रिपोर्ट है। आप इसे झुटला नहीं सकते। अपने मन में बसे मेल को निकालिए ओर देखिये दुनिया कितनी ख़ूबसूरत हो चली है। आप उन लोगों में से हैं जो करते तो कुछ भी नहीं बस चिल्लाते रहते हैं की देश नहीं सुधरेगा, नेता नहीं सुधरेंगे। बिहार की जो गत आज है वो आप ही जैसे कुछ लोगों के कारण हुई होगी, इसमें मुझे कोई शक नहीं!!!!
आशु जी,
जवाब देंहटाएंस्वस्थ बहस की जरुरत...हम बहस कर रहे हैं..नितिन गडकरी बन्ने का प्रयास नहीं कर रहे..हम उनके तरह अपना जुबान क्यों ख़राब करें? मुझे उम्मीद है आप मेरी बातो को समझ रहे होंगे...भाषाई अंदाज से गरमदल के लगते हैं..पर तहजीब भी जरूरी है..
सदर/स्नेह
आपका ही
सौरभ.के.स्वतंत्र
chhuchhundar ke sar par kabhi chameli sobha nahi de sakti
जवाब देंहटाएंAap chillate rahiye Ashu sahab
प्रवीण जी,
जवाब देंहटाएंअब तो आपको जी कहने में भी शर्म आ रही है..आशु ठीक कह रहे हैं आपके बारे में..इतनी कुंठित मानसिकता..आप नाहक अपशब्द का प्रयोग कर रहे हैं...छी..छी... आप किस संस्कार में पले-बढे हैं?
प्रवीण बाबू,
जवाब देंहटाएंआपको मेरी ओर से धन्यवाद! ऐसी ओछी बात लिख कर आपने जाता ही दिया कि आप क्या हैं। ज्यादा कुछ कहना नहीं चाहता। कीचड में पत्थर मारूंगा तो कीचड मुझपे भी पड़ेगा। रखिये बिहार के बारे में जो कुंठा रखनी है मन में रखिये। आपके रखने न रखने से बिहार का विकास रुकेगा नहीं।
सौरभ जी,
धन्यवाद आपको एक अति-महत्त्वपूर्ण मुद्दे को उठाने के लिए। थोड़ी कडवी बोली बोलने की आदत है इसलिए बुरा मत मानियेगा।
खैर, बिहार की वर्तमान स्थिति के बारे में ओर जानना है तो मेरे ब्लॉग http://draashu.blogspot.com/2010/05/blog-post_30.html पर मनोज जी का कमेन्ट भी देखिये।
धन्यवाद!!!
नीतीश और बिहार पर सार्थक बहस
जवाब देंहटाएं'नीतीश का बिहार , नीतीश के पत्रकार' में बिहार की वर्तमान पत्रकारिता पर की गई मेरी टिप्पणी पर अनेक प्रतिक्रियाएं मिली हैं। विभिन्न ब्लॉग्स पर भी टिप्पणियां की जा रहीं हैं। कुछ सहमत हैं, कुछ असहमत हैं। एक स्वस्थ- जागरूक समाज में ऐसी बहस सुखद है। लेकिन मेरी टिप्पणी से उत्पन्न भ्रम को मैं दूर करना चाहूंगा।
अव्वल तो मैं यह बता दूं कि अपने आलेख में मैंने कहीं भी बिहार अथवा नीतीश कुमार की आलोचना विकास के मुद्दे पर नहीं की है। मेरी आपत्ति उन पत्रकारों के आचरण पर है जो कथित रुप से सच पर पर्दा डाल एकपक्षीय समाचार दे रहें हैं या विश्लेषण कर रहें हैं। कथित इसलिए कि मेरा पूरा का पूरा आलेख एक पत्रकार मित्र द्वारा दी गई जानकारी पर आधारित था । अगर वह जानकारी गलत है तो मैं अपने पूरे शब्द वापस लेने को तैयार हूं। और अगर सच है तब पत्रकारिता के उक्त कथित पतन पर व्यापक बहस चाहूंगा। उक्त मित्र के अलावा अनेक पत्रकारों सहित विभिन्न क्षेत्रों के लोगों ने भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा पत्रकारों को प्रलोभन के जाल में फांस लेने की जानकारियां दी हैं। मेरे आलेख पर विभिन्न ब्लॉग्स में ऐसी टिप्पणियां भी आ रहीं हैं। फिर दोहरा दूं, अगर पत्रकारों के संबंध में आरोप सही हैं तब उनकी आलोचना होनी ही चाहिए।
'उसका सच' ब्लॉग पर भाई सुरेंद्र किशोरजी का साक्षात्कार पढ़ा। सुरेंद्र किशोरजी मेरे पुराने मित्र हैं। उनकी पत्रकारीय ईमानदारी को कोई चुनौती नहीं दे सकता। ठीक उसी प्रकार जैसे नीतीश कुमार की व्यक्तिगत ईमानदारी पर कोई सवाल खड़ा नहीं किया जा सकता। सुरेंद्रजी की बातों पर अविश्वास नहीं किया जा सकता लेकिन अगर पत्रकारों को प्रलोभन और प्रताडि़त किए जाने की बात प्रमाणित होती हैं तब निश्चय मानिए, सुरेंद्र किशोरजी उनका समर्थन नहीं करेंगे।
किसी ने टिप्पणी की है कि मैं नागपुर में रहकर राज ठाकरे की भाषा बोलने लगा हूं। उन्हें मैं क्षमा करता हूं कि निश्चय ही मेरे पाश्र्व की जानकारी नहीं होने के कारण उन्होंने टिप्पणी की होगी। मेरे ब्लॉग के आलेख पढ़ लें तो उन्हें मालूम हो जाएगा कि राज ठाकरे सहित ठाकरे परिवार पर मैं क्या लिखता आया हूं। 1991 में, जब उन दिनों बाल ठाकरे के खिलाफ लिखने की हिम्मत शायद ही कोई करता था, मैंने अपने स्तंभ में 'नामर्द' शीर्षक के अंतर्गत उनकी तीखी आलोचना की थी। क्योंकि तब शिवसैनिकों ने मुंबई में पत्रकारों के मोर्चे पर हथियारों के साथ हमला बोला था। पत्रकार मणिमाला पर घातक हथियार से हमला बोला गया था। मेरी टिप्पणी से क्रोधित दर्जनों शिवसैनिकों ने मेरे आवास पर हमला बोल दिया था। आज भी उत्तर भारतीयों के खिलाफ राज ठाकरे के घृणित अभियान पर कड़ी टिप्पणियों के लिए मुझे जाना जाता है।
सभी जान लें, बिहार की छवि और विकास की चिंता मुझे किसी और से कम नहीं है। हां, अगर अपनी बिरादरी अर्थात पत्रकार बिकाऊ दिखेंगे तब उन पर भी मेरी कलम विरोध स्वरुप चलेगी ही। लालूप्रसाद यादव का उल्लेख मैंने जिस संदर्भ में किया है उस पर बहस जरूरी है। लालू ने पत्रकारीय मूल्य को चुनौती दी है। उन्हें जवाब तो देना ही होगा।
विनोद जी इस बहस में सरिक होने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद..जब मैंने यह बहस छेड़ी तो मुझे लगा कुछ सार्थक नतीजे निकलेंगे..पर एकपल में ऐसा लगा कि बहस एकतरफा हो रहा है..पर अब आपकी प्रतिक्रिया मुझे महसूस करा रही है कि कुछ सार्थक बहस होंगे...
जवाब देंहटाएंइसमें कोई शक नहीं कि बिहार का विकास पिछले शासन के मुकाबले काफी ज्यादा हुआ है। लेकिन, इसमें भी कोई शक नहीं जितना विकास हुआ है, उससे बहुत ज्यादा का ढिंटोरा पीटा जा रहा है। मैं भी एक पत्रकार हूं और बिहार से ही हूं। मुझे भी कई पत्रकार मित्रों ने बताया है कि नीतीश जी का 'मीडिया मैनेजमेंट' जबर्दस्त है और वे पत्रकारों को अक्सर (पूरे समुदाय की बात नहीं कर रहा हूं, पर ऐसे लोगों की अच्छी संख्या है)उपकृत करते रहते हैं। बिहार ही क्यों दिल्ली में बैठे बड़े-बड़े पत्रकार मैनेज हो रहे हैं और कर रहे हैं। नीरा राडिया केस में दिलीप संघवी और बरखा दत्त का नाम आना इस बात का ज्वलंत उदाहरण है। बिनोद जी की बात को व्यक्तिगत रूप से लेने की बजाए उसे इस रूप में लेना चाहिए मीडिया संस्थानों और ज्यादातर पत्रकारों में प्रतिरोध का वो जज्बा नहीं रहा और मीडिया में राजनीति और पैसे की भूमिका काफी बढ़ गई है। मेरे ख्याल से विनोद जी इसी बात की ओर इशारा कर रहे हैं। पिछले दिनों मेरी चर्चा भी हिंदी के बहुत बड़े ग्रुप के प्रधान संपादक से हुई थी। पेड न्यूज के बारे में जब मैंने चर्चा की, तो उन्होंने इस पर कोई साफ स्टैंड नहीं लिया और गोलमोल उत्तर देकर बात को खत्म कर दिया। हालांकि, इसमें कोई शक नहीं कि अभी भी बहुत मिशनरी पत्रकार हैं और पत्रकारिता के सम्मान को बचाए हुए हैं, लेकिन इसमें भी कोई शक नहीं है कि पत्रकारीय निष्ठा का क्षरण जबर्दस्त रूप से हुआ है।
जवाब देंहटाएंbihar ka vikas par charcha me jo baat piche rah gai vah yahi ki hamne ikdusre ke vichar kee udherbun karne ko vimarsh samajh liya.
जवाब देंहटाएंvikas bhi use hi dikhta hai jo purgrah bina dekhna chahe.
विजय जी की टिप्पणी के बाद बहस एकतरफा नहीं रह गई है। विनोद जी के ब्लॉग पर मैने इस लेख के बारे में टिप्पणी की थी। आदरणीय विनोद जी का एक पत्रकार मित्र के कहने पर ही भरोसा करके लिख देने पर मुझे घोर आश्चर्य हो रहा है। जैसा मैने उनके आलेख को पढ़ने के बाद टिप्पणी के तौर पर भी कहा है। इसमें कोई शक नहीं की मीडिया में भी काफी गिरावट आ गई है(लगातार कुछ पोस्ट मैं इस पर लिख चुका हूं) पर किसी विशेष क्षेत्र के पत्रकारों की पूरी जमात के बारे में ऐसा लिखना विनोद जी के स्तर के पत्रकार को शोभा नहीं देता। उनकी इस ब्लॉग पर टिप्पणी के बाद उन्होंने अपनी सफाई दी है। क्योंकी आलेख में कहीं भी नहीं लगा कि विनोज जी सिर्फ और सिर्फ भष्ट्र पत्रकारों के बारे में कह रहे हैं। इसलिए उनते पोस्ट के बाद जो प्रतिक्रिया आई है वो एकदम दुरुस्त है।
जवाब देंहटाएंअब स्वस्थ बहस हो रहा है..
जवाब देंहटाएंsaurabhji,
जवाब देंहटाएंvinodji,khud patrkar hai. fir sunisunai baato par kaise bharosa kar liye?
bihar me itna kharab bhi nahi hai, desh me bihar ki patrkarita ka ujla chehra hariwanshji aur surendra kishoreji jaise log bhi hai.
..kirtirana
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अच्छी बहस है । नागपुर के पत्रकार मित्र ने जो कुछ भी लिखा है उसको सिर्फ यह कहकर आप नही टाल सकते कि वो नागपुर में रहकर बिहार के सच को नही जान सकते । अब तो चुनावी वर्ष है इसका फैसला भी नवंबर में हो जाएगा कि नीतिश कुमार की लोकप्रियता कितनी है ? सबसे हपले बात करते है है उनके चुनावी वायदे की ..सत्ता संभालने के १०० दिन के बाद कानून का राज। निश्चित रुप से ला एंड आर्डर की स्थिती पहले से बेहतर हुइ है लेकिन आम आदमी प्रशासनिक सुविधाओं और सरकार के द्वारा मिलने वाली कल्यानकारी योजनाओं के लाभ से कोसों दूर है । नरेगा की बात हो या इंदिरा आवास की एपील बीपीएल ..ऐसी कितनी योजनाऐं है जहां खुली लूट मची है ऐसी लूट और प्रशासनिक अराजकता का हाल लालू यादव के समय में भी नही था । नौकरियों में ठेका प्रथा का बोलबाला नीतिश कुमार के राज में बढा है । प्राथमिक बच्चों का भविष्य अनपढ शिक्षा मित्र कर तय कर रहे है वहीं प्राथमिक अस्पतालों में गरीबों का इलाज ठेके के डाक्टर महज कुछ रुपये की तनख्वाह पर कर रहे है । लालू जातवाद का ढोल पीटते थे लेकिन नीतिश कुमार ने जातीवाद को संस्थागत रुप दिया । रही बात पत्रकारों के विकाउ होने की तो यह बात सरासर गलत है टाप लेवल मैनेजमेंट नीतिश कुमार के सामने बेबस हेकर खडा है तो भला उसके निचे काम करने वालों की क्या बिसात है ? आप बिहार के अखबारों के पन्ने देखें आप को समझ में आ जाएगा कि वाकइ अखबार प्रबंधनों की मजबूरी है नीतिश सरकार की चापलूसी करना । जिस तरीके से इलैक्ट्रानिक मीडिया टीआरपी के भूत तले काम करती है उसी तरह से प्रिंट के लिया विग्यापन। रही बात मंडल के दौर की तो उस समय सारे अकबारों की भाषा मंडल विरोधी लोगों के साथ थी । लालू प्रसाद के लिये टानिक का काम अगर मंडल की आग ने किया तो लालू की जडें मजबूत करने में भी यही मंडल विरोधी अखबारी नजरिये ने अपनी ओर से कोइ कोर कसर नही छोडी । रही बात सुरेंद्र किशोर जी की पहले मैं उनके लेखों को बडी ही तन्यमता से पढता था अब तो उनके लेख लेख कम नीतिश की वंदना ज्यादा लगता है । काहू को सराहू सराहू छत्रसाल को ...दरबारी कवि भी पहले कुछ आगे पिछे देखर राजा का गुणगान करते थे लेकिन सुरेंद्र किशोर जी ने वो सारी सीमाएं तोड दी है ...खैर राज्यसभा में जाने की तम्न्ना रखने के लिये ऐसा करना कहीं से गलत भी नही है ।...वैसे माफ कर देंगे छोटा आदमी हूं ।
जवाब देंहटाएंकीर्ति जी,
जवाब देंहटाएंयही सोच कर तो मैंने बहस छेड़ा था. विनोद जी की लपेटे में बिहार के सभी पत्रकार आ रहे थे...खैर अब तो उन्होंने अपने बात वापस ले लिए हैं..
अलोक जी,
जवाब देंहटाएंमै ज्यादा बात नहीं करूँगा...सुरेन्द्र जी का साक्षात्कार पढ़ लीजिये...फिर बात कीजिये...