सच हम नहीं, सच तुम नहीं, सच है महज संघर्ष ही!

गुरुवार, मई 27, 2010

ब्लॉग लेखन : हिंदी का अहित करने वाला अश्लील कर्म ?

आज कथाक्रम पत्रिका का अप्रैल-जून अंक पढ़ रहा था..पत्रिका के संपादक शैलेन्द्र सागर जी ने वर्तमान अंक में ब्लॉग की विसंगतियों पर "ब्लॉग पर कुछ ट्वीटिंग" शीर्षक से सम्पादकीय लिखा है. सम्पादकीय पढने से यही मालूम होता है कि ब्लॉग लेखन सागर जी के लिए पहले एक गंभीर रचनाकर्म था..पर अब कतिपय ब्लॉग पर विचरने के बाद यह उनके लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आढ़ में हिंदी का अहित करने वाला अश्लील कर्म है. आपकी सुविधा के लिए नीचे लिंक दिया जा रहा है आप कथाक्रम के साईट पर जाकर सीधा इस लेख को पढ़ सकते है...
http://www.kathakram.in/may/sampadakiya.pdf

15 टिप्‍पणियां:

  1. शैलेन्द्र सागरजी ने काफी कुछ सही लिखा है. अनेक ब्लॉग में अश्लील और अभद्र भाषा का प्रयोग होता है, जो ब्लॉग जगत की गरिमा के लियें उचित नहीं. तुर्रा यह कि कुछ लोग ऐसी भाषा का प्रयोग करना हिम्मत की बात मानते हैं.

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  2. शैलेन्द्र सागर ने वैसे तो प्रारंभ में ही डिस्क्लेमर लगा दिया है, मगर वो डिस्क्लेमर ही सही तस्वीर है.

    दरअसल, लगता है कि उन्होंने गूगर में कुछ 'पॉपुलर' शब्दों से ब्लॉग सर्च किए होंगे और गूगल ट्रेंड के हिसाब से ज्यादा खोजे (?)जाने वाले शब्दों युक्त ब्लॉग उनकी नजर से गुजर गए...

    वैसे, उनका कथाक्रम की प्रसार संख्या क्या है? 1000? 1500? चलिए, मान लिया कि दस हजार होगी, तब भी रचनाकार ब्लॉग के सामने कुछ नहीं है - महीने में 45 हजार से भी ज्यादा पेज लोड्स और महीने में 80-90 आलेख-कथा-कहानी-कविता इत्यादि. कथाक्रम क्या किसी भी प्रिंट पत्रिका में इतनी सामग्री असंभव है!

    हद है! जिन्हें किसी दूसरे फ़ील्ड के बारे में ज्ञान नहीं होता वहाँ, बघारना नहीं चाहिए नहीं तो आपकी अज्ञानता तो प्रकट हो ही जाती है.
    काश, ये टिप्पणी संपादक महोदय खोज-बीन कर पढ़ पाते!

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  3. ravi ki baat meri bhi samjhee jaaye

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  4. रवि जी ने बात को बडे ही तरीके से और स्पष्ट रूप से कह दिया है । संपादक जी वही दिखा जो वे देखना चाहते थे या शायद रोज देखते हों , हिंदी अंतर्जाल और विशेषकर ब्लोग्गिंग में बहुत अनमोल और अदभुत काम हो रहा है । और वो दिख भी रहा है जो आंखें मूंदे रखना चाहते हैं वे खुशी से मूंदे रहें और ऐसे ही संपादकीय लिखते रहें ।

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  5. पाण्डेय जी और शैलेन्द्र जी,
    आपको यह मन लेना चाहिए कि ब्लॉग लेखन में भी अच्छे काम हो रहे हैं...वैसे तो प्रिंट में भी पोर्न किताबे प्रकाशित होती हैं..तो क्या हम मान ले कि प्रिंट भी हिंदी की अस्मिता को धूमिल कर रहा है. कुछ अश्लील ब्लॉग के बाट से सभी ब्लॉग को तौल देना कहाँ का इंसाफ है?


    - सौरभ के.स्वतंत्र

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  6. बेनामी कमेन्टबाज तुम जैसे भी शैलेन्द्र सागर और अन्य संपादको को मजबूर करते हो ब्लॉग लेखन पर नकारात्मक टिपण्णी करने के लिए.

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  7. रवि जी कथाक्रम हर ए.एच.व्हीलर्स पर उपलब्ध होती है..हालाँकि उसके सर्कुलेशन का सही अंदाज मुझे भी नहीं..पर अनुमान है २०,००० जरुर होगी.

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  8. प्रिय सौरभ जी, प्रसन्‍न रहें।
    मुझे ऐसा लगा कि आपने मुझे भेजा है पढ़ने के लिए। मैंने सोचा कि इसे नुक्‍कड़ पर लगा दिया जाए। वहां पोस्‍ट करके वापिस आया कि आपको बतलाऊं तो देखा कि यह तो आपके ब्‍लॉग पर पहले ही प्रकाशित है।
    खैर ... मैं उसमें आपके ब्‍लॉग का जिक्र भी कर देता हूं। विश्‍वास है कि अन्‍यथा नहीं लेंगे। परन्‍तु इन बेनामी टिप्‍पणीबाजों ने माहौल खराब कर रखा है। इन्‍हें किसी का आदर करना ही नहीं आता। आलोचना को स्‍वस्‍थ तौर पर लेना चाहिए और उसी के अनुसार स्‍वयं में परिवर्तन करना चाहिए।
    सादर/सस्‍नेह

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  9. मैं रविरतलामीजी की बात से पूरी तरह सहमत हूं। शैलेन्द्र सागरजी को थोथी नैतिकता नहीं बघारनी चाहिए और वो भी तब जबकि उन्हें ब्लॉगिंग को लेकर कोई गंभीर समझ नहीं है। साहित्यकि पत्रिकाओं को पढ़नेवाले पाठकों के बीच भले ही शेखी मिल गयी होगी लेकिन वर्चुअल स्पेस पर भद्द पिटना न केवल स्वाभाविक है बल्कि जरुरी भी।.

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  10. विनीत जी, शैलेन्द्र जी के सम्पादकीय से हमारी सहमती नहीं है..क्योंकि चंद ब्लॉग के बिना पर प्रिंट के पाठको को ब्लॉग से बरगलाना उचित नहीं लगता. पर अगर हम में (ब्लॉग लेखन में) कोई सुधार की गुंजाईश हो तो हमे उसके लिए जरूर कदम बढ़ाना चाहिए...ताकि फिर कोई ब्लॉग लेखन को लेकर भ्रम न पाले.. आक्रोश भी वाजिब है...पर जरूरत है ब्लॉग लेखन को रचना के क्षेत्र में उचित स्थान दिलाने की. हम-आप-सभी नेट पर बैठ कर मेहनत करते हैं...उसको उचित स्थान जरूर मिलना चाहिए..गरियाने वालों की खैर नहीं.

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  11. जी अविनाश जी, स्वस्थ सोच और स्वस्थ कमेन्टबाज की दरकार है.

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