जीना इसी का नाम है!
न कोई प्रजा हैन कोई तंत्र हैयह आदमी के खिलाफ़आदमी का खुला साषड़यन्त्र है ।--------------हर बार की तरहतुम सोचते हो कि इस बार भी यहऔरत की लालची जांघ सेशुरू होगा और कविता तकफैल जाएगा ।बिल्ली का पंजाचूहे का बिल है ।
-सुदामा पाण्डे धूमिल
waah !!kya khoob likhte hain aap
पढ़े और समझें, मुझे तो अच्छा और सच्चा लगा.
waah !!
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पढ़े और समझें, मुझे तो अच्छा और सच्चा लगा.
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