सच हम नहीं, सच तुम नहीं, सच है महज संघर्ष ही!

गुरुवार, अगस्त 13, 2009

मुरलीवाले द्वारा शाश्वत सच की बानगी



यदा यदा ही धर्मस्य ग्लनिर्भवति भारत,
अभ्युत्थानमधर्मस्य स्वात्मानं सृजाम्यहम,
परित्राणाय साधूनाम विनाशाय च दुष्कृताम,
धर्मसंस्थापनार्थाय, संभवामि युगे युगे।

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