सच हम नहीं, सच तुम नहीं, सच है महज संघर्ष ही!

शनिवार, अगस्त 08, 2009

समझौता पत्र

सोचा था नहीं बनने दूँगी कभी
समझौता का पर्याय जिंदगी
एक दिन
वक्त ने ख़त लिखा जिंदगी के नाम
कि स्वप्न का आकाश
धरती पर उतर नहीं सकता
उतार भी दो गर
तो जिन्दा रह नहीं सकता
और जाने कब वक्त थमा गया
जिंदगी के नाम
मेरे हस्ताक्षरयुक्त एक समझौता पत्र।

- सीमा स्वधा
(
कादम्बिनी के दिसम्बर'२००५ अंक में प्रकाशित)

1 टिप्पणी: