शब्द खो गए हैं
शेष है/ सिर्फ़ मौन
चाहता है मन
तमाम अनुभवों को बांटना
करना तमाम बातें
मौसम की, फूलों की, हवाओं की
कुछ तुम्हारी मेरी अपनी भी।
मगर/उन गिने चुने पलों को
तौलती तुम्हारी बेरुखी में
मुखर होता है
सिर्फ़ मौन।
शायद कल मिले
अनुकूल शब्द और पल भी
दे सकूं अभिव्यक्ति
जब मैं अपनी भावनाओं को
इन्हीं सोच में डूबा मन
तै कर चुका होता है
एक और रात का सफर।
-सीमा स्वधा
(संवेद वाराणसी के जनवरी-जून'2006 अंक में प्रकाशित)
मुझे बहुत पसंद आया सीमा जी का लिखा हुआ
जवाब देंहटाएंसीमा जी रचना बहुत उम्दा है. आपका आभार इसे प्रस्तुत करने के लिए.
जवाब देंहटाएं