सच हम नहीं, सच तुम नहीं, सच है महज संघर्ष ही!

रविवार, अगस्त 09, 2009

मैं तो मंत्री हूँ...महंगाई से मेरे को क्या?

मैं मंत्री हूँ...कोई ऐसा वैसा मंत्री नही...वित्त मंत्री...महंगाई मेरे को कैसे छुएगी..मैं तो एसी में रहता हूँ...महंगाई एसीनुमा महल में नही..झोपड़ पट्टी में पाँव पसारती है...अपुन को उससे क्या लेना-देना...जब चुनाव आएगा तो थोड़ा कष्ट उठा लेंगे..घूम लेंगे झोपड़ पट्टी में....चैनलों पर देखा कैसे लोग महंगाई से परेशान हैं..पर इस महंगाई पर भारत सरकार का कोई वश नही....यानी महंगाई को नियंत्रित करने के लिए मुझे या मेरे मंत्रालय को कुछ करने की जरूरत नही है...हाँ इतना जरूर करूँगा कि जब चुनाव आएगा..हफ्ता-दो-हफ्ता पहले पेट्रोल,गैस,दाल,चावल का भाव कम कर देंगे...कर्ज माफ़ कर देंगे...और फिर चुनाव के बाद तान देंगे...जैसा कि अभी ताना हूँ....अरे आप भूल गएँ क्या मै वित्त मंत्री हूँ...महंगाई मेरे को थोड़ो हीं छुयेगी...फिलहाल मुझे इस एसीमय बंगले का मजा लेने दीजिये...मिलते हैं ब्रेक के बाद..

12 टिप्‍पणियां:

  1. sahi baat hai maine bhi apane blog me likha hai ki "aam aadmi " ko maar daala aaloo ke daamne ..ye minister banne ke baad bhul jate hai ki garib kya hai ..inhe kuch nahi padi hai sirf padi hai to VOTE ki jo kuch na samaj insan nina samje hi de dete hai .....bahut accha laga sacchai padhakar ..waaah !

    ---eksacchai {AAWAZ }

    http://eksacchai.blogspot.com

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  2. सच्चाई जी बिलकुल सही कहा आपने मैं आपके बात से सहमत हूँ....

    आपका हीं
    सौरभ के.स्वतंत्र

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  3. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  4. सही बात है. जब नेता किसान कहते हैं तो उसका अर्थ होता है ज़मींदार और जब वे माध्यम वर कहते हैं तो उसका अर्थ होता है जमाखोर व्यापारी. सब नीतियाँ वोट और धन पर कब्ज़ा किये हुए इन्हीं दो वर्गों के लिए बंटी हैं.

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  5. ब्रेक के बाद भी क्या होगा हम लोग चिल्लाते रहेंगे और वो लोग कानों मे रूई दे कर सो्ते रहेंगे अब कहने से कुछ नहीं होने वाला बस इनके गले पकडने होंगे मगर हम कौन सा उन से कम हैं करना धरना कुछ है नहीं दफ्तरों मे बैठ कर लेख लिख देते हैं या आपस मे बहस कर लेते हैं वैसे पोस्त अच्छी है आभार््

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  6. शासक-शासित में बँटा, अपना भारत वर्ष.

    शोषित का अपकर्ष है, शोषक का उत्कर्ष.

    शब्दवीर जो सोचते लिखते-कहते रोज.

    असर नहीं क्यों कीजिये इसके ऊपर खोज.

    लिखकर हम यह मानते पूर्ण हो गया फ़र्ज़.

    लड़ते नहीं बुराई से, रहता बाकी क़र्ज़.

    'सलिल'आम जन से जुड़े,बन उनकी आवाज़.

    तब कवी की हुंकार से, हिल जायेंगे ताज.

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  7. निर्मला जी तो क्या मान लें कि कलम की कटारी में अब वो धार नहीं

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  8. सलिल जी ऐसी प्रतिक्रिया के लिए आपको धन्यवाद..वैसे मैंने आपकी प्रतिक्रिया को पोस्ट के रूप में लगा दिया है..

    आपका हीं
    सौरभ के.स्वतंत्र

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