सच हम नहीं, सच तुम नहीं, सच है महज संघर्ष ही!

शनिवार, अगस्त 01, 2009

अकेले में

हम सिर्फ अकेले में ही
अकेले नहीं होते,
दरअसल
अकेलापन उपजता है
मन के भीतर
पसरता है हाव भाव से
आँखो से होता हुआ
सारे वजूद तक.

तभी तो
तन्हाइयों में होता है
अक्सर / भीड़ सा एहसास।
और भीड़ में
करते हैं हम
अकेलेपन की तलाश।

- सीमा स्वधा

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