सच हम नहीं, सच तुम नहीं, सच है महज संघर्ष ही!

शनिवार, जुलाई 25, 2009

निर्वस्त्र महिला पर राजनीति

पटना में कतिपय लम्पटों द्वारा खुशबू को निर्वस्त्र किए जाने के बाद विपक्ष द्वारा राजीनीति किया जाना, मानसिक दिवालियापन की पराकाष्ठा है। वाकई ऐसी घटनाएँ हमारे समाज के लिए काला धब्बा है। पर इस मुद्दे की आंच पर राजनीतिक रोटी सेंकना शर्म को शर्मशार करने वाली बात है। सबके दिलो-दिमाग में यहीं प्रश्न उमड़-घुमड़ रहा है कि आख़िर कब सुधरेगा बिहार? पर मेरा मन बार-बार यही कह रहा है:

जंगल का तो भेड़िया
चकित खड़ा लाचार
खादीधारी मेमना
उससे भी खूंखार.
- सौरभ के.स्वतंत्र

6 टिप्‍पणियां:

  1. ये ब्लोग बहूत अच्छा हैं

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  2. Very shame ful event for whole civilized society,you raised a right question at right time.
    regards,
    Dr.Bhoopendra

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  3. उत्साहवर्धन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद संगीता जी...

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  4. राजनीती तो हो ही रही है ...
    बिलकुल सही कहा आपने ...

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  5. सचमुच, खद्दरधारियों से लोग तंग आ चुके हैं। आपने सही मुद्दा उठाया है। लिखते रहें। मेरे ब्लॉग पर भी आएं।

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