सच हम नहीं, सच तुम नहीं, सच है महज संघर्ष ही!

बुधवार, जुलाई 15, 2009

टापू

जानती हूं मैं
सागर हो तुम
अथाह, विस्तृत, उन्मुक्त
और मेरी इयत्ता
एक नौका भर है
जानते हो तुम!
उभचुभ सांसों को संभाले
ढूंढती हूं मैं
कोई टापू
प्रेम का, विश्वास का
जहां ले सकूं मैं
चंद सांसे
सुकून की।

- सीमा स्वधा

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