एक खबर है कि सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के जजों की ब्लॉग पर अपनी भड़ास निकालने की बढती प्रवृति के मद्देनजर उनके ब्लॉग लेखन पर पूर्णरूप से रोक लगा दिया है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि जज जो भी बोलना चाहते हैं कोर्ट कक्ष में बोलें। यदि भावनाएं ज्यादा जोर मार रही हों तो फैसलों में उन्हें व्यक्त करें।
ये अभिव्यक्ति पर प्रहार नहीं है, ब्लॉग में जज सहन ने जो लिखा है वह गलत है. अपने पेशे से सम्बंधित गोपनीय बातों का खुलासा या फिर किसी और के निर्णय पर आक्षेप - जो समकक्ष हो उचित नहीं है. ब्लॉग पर अन्य अभिव्यक्ति पर प्रतिबन्ध नहीं होना चाहिए. कुछ पदों कि गरिमा बरकरार रहनी चाहिए.
... ब्लॉग लिखने पर पाबंदी लगाना गलत है... फिर वह जज ही क्यों न हो!... अपने मन की हर इच्छा या भडास, एक जज कोर्ट में कैसे निकाल सकता है?... जज भी एक साधारण मनुष्य है, उसे अपनी बात ब्लॉग द्वारा जन साधारण के सामने रखने का अधिकार मिलना ही चाहिए! ... ब्लॉग लिखने पर पाबंदी लगाना गलत है... फिर वह जज ही क्यों न हो!... अपने मन की हर इच्छा या भडास, एक जज कोर्ट में कैसे निकाल सकता है?... जज भी एक साधारण मनुष्य है, उसे अपनी बात ब्लॉग द्वारा जन साधारण के सामने रखने का अधिकार मिलना ही चाहिए!... अरविंद जी ने एक महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया है!
kya kahna
जवाब देंहटाएंयह तो अभिव्यक्ति पर प्रहार है !
जवाब देंहटाएंअरविन्द जी,
जवाब देंहटाएंये अभिव्यक्ति पर प्रहार नहीं है, ब्लॉग में जज सहन ने जो लिखा है वह गलत है. अपने पेशे से सम्बंधित गोपनीय बातों का खुलासा या फिर किसी और के निर्णय पर आक्षेप - जो समकक्ष हो उचित नहीं है. ब्लॉग पर अन्य अभिव्यक्ति पर प्रतिबन्ध नहीं होना चाहिए. कुछ पदों कि गरिमा बरकरार रहनी चाहिए.
... ब्लॉग लिखने पर पाबंदी लगाना गलत है... फिर वह जज ही क्यों न हो!... अपने मन की हर इच्छा या भडास, एक जज कोर्ट में कैसे निकाल सकता है?... जज भी एक साधारण मनुष्य है, उसे अपनी बात ब्लॉग द्वारा जन साधारण के सामने रखने का अधिकार मिलना ही चाहिए!
जवाब देंहटाएं... ब्लॉग लिखने पर पाबंदी लगाना गलत है... फिर वह जज ही क्यों न हो!... अपने मन की हर इच्छा या भडास, एक जज कोर्ट में कैसे निकाल सकता है?... जज भी एक साधारण मनुष्य है, उसे अपनी बात ब्लॉग द्वारा जन साधारण के सामने रखने का अधिकार मिलना ही चाहिए!... अरविंद जी ने एक महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया है!