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मंगलवार, मई 11, 2010

बिहार की नदियां सोना उगलती हैं!

मैं उस नदी के तट पर खड़ा हूं जो मुफलिसी के मारे लोगों के लिए सोना उगलती है। अभी नदी में पानी कम है। ज्यादा से ज्यादा घुटने तक। नदी में कुछ लोग मेढ़ बना रहे हैं और कुछ बालू व कंकरीट से सोना निकाल रहे हैं। सहसा किसी को भी भरोसा नहीं होगा कि ऐसी भी नदी होती है, जो सोना उगलती है। पड़ताल की। पता चला कि बिहार के पश्चिम चम्पारण जिलान्तर्गत खैरहनी दोन के कई लोग काठ के डोंगा, ठठरा, पाटा व पाटी के साथ नदी की धारा से सोना निकाल रहे हैं। वह भी सचमुच का। इतने में एक जिगरा के छाल के लेप से लबालब सतसाल की लकड़ी पर कुछ बालू व सोना लिए आया। दिखाते हुए कहता है- साहब यह देखिए यह सोना है और यह है बालू। इसे निकालने की तरकीब। उसने बताया पहले नदी में मेढ़ बांधते हैं। फिर डोगा लगाते हैं। तब उसपर ठठरा रखते है। पत्थर ठठरे के उपर, बालू डोगा के अंदर और फिर बालु की धुलाई। तब बालू सतसाल की काली लकड़ी पर फिर धुलाई तब जाकर दिनभर में निकलता एक से दो रती सोना। इतने पे बात समाप्त नहीं होती। इसके आगे जानिए। सतसाल की पटरी से सोने के कण को उठाकर जंगली कोच के पत्ता पर सोहागा के साथ रखते हैं। आग में तपाते हैं। फिर अंत में लकड़ी के कोयले में बांधते हैं तब जाकर बिक्री लायक हो जाता है यह सोना। दिनभर की कमाई एक से दो रती सोना। यानि बिचौलिए खरीददारों से मिलनेवाले दो सौ या ढाई सौ रुपये। इन गरीबों की पीड़ा- एक तो सरकार की कोई योजना नहीं इस सोने की खातिर। फिर खाकी वाले हाकिमों का खौफ हर पल सताता है। चलिए इनकी मेहनत कहां-कहां बिकती इसे भी जानते हैं। गरीब बताते हैं साहेब- गांव में हीं शेठ साहुकार मिल जाते है और जो दे देते हैं उतने में बेच देते हैं। अर्थात् काफी हद तक कई गांवों के लोगों के लिए यह नदी आर्थिक ताना-बाना बुन सकती है, लेकिन जरुरत एक अदद कुशल योजना की। यहां जानकारी दूं कि हिमालय की तलहटी से निकली यह नदी नेपाल की पहाडिय़ों से होकर बिहार के पश्चिम चम्पारण (बेतिया) जिले के वाल्मीकिनगर में सोनाहां व हरनाटांड़ से लेकर रामनगर प्रखंड के दोन इलाके में कही पचनद तो कहीं हरहा नाम से जानी जाती है। इस नदी के इस सोने के कण को गर्दी दोन, कखैरहनी,कमरछिनवा दोन, पिपरहवा, मजुराहा व वाल्मीकिनगर के अलावा इण्डो-नेपाल बार्डर के सीमावर्ती गांवों के लोगों के लिए कुछ महीने तक के लिए रोजगार देती है। ग्रामीण बताते हैं कि जब खेती का समय नहीं होता। तभी यह सबकुछ चलता है। इसके बाद कुछ भी नहीं।

- संजय उपाध्याय, बगहा, बिहार

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