सच हम नहीं, सच तुम नहीं, सच है महज संघर्ष ही!

रविवार, जून 13, 2010

एक शहरी माओवादी से साक्षात्कार!

अरुंधती रॉय अपनी सपाट बयानी और साफगोई के लिए मशहूर हैं। नक्सलवादियों के इलाके दंडकारंय के जंगल में उन्होंने आदिवासियों और माओवादियों के साथ पिछले दिनों काफी वक्त बिताया है। विकास के नाम पर विध्वंस उन्हें कतई बर्दाश्त नही। पेश है शुक्रवार पत्रिका के डा.रमेश निर्मल द्वारा लिए गए साक्षात्कार के कुछ अंश..मुझे लगा ये पढना जरुरी है.....
- आप खुल कर माओवादियों के साथ हैं?
हाँ, मै हूँ। यदि इस वजह से वे मुझे पकड़ते हैं, तो पकड़ ले। जेल में बंद कर दे। मुझे अपनी गिरफ्तारी का भी कोई डर नही है। माओवादियों ने ७६ मासूमो कि जान ली , फिर भी मै अत्यचारी सरकार के साथ नही हो सकती। आखिर ७६ जवान एके ४७ लेकर आदिवासियों के गाँव में क्या कर रहे हैं? इस jansangharsh में अत्याचारों का विश्लेषण करने में मेरा विश्वास नही।
- आप हाल में दंतेवाडा गयी थी?
हाँ, मै वहां इस साल के आरम्भ में ३-४ हफ्ते रहकर आई हूँ। वहां के सबसे गरीब लोगों के सर से पानी गुजर चूका है। और वे सरकार कि ताकत से भी भीड़ गए हैं।
- पर माओवादियों ने भी तो अपराध किये हैं?
हाँ, माओवादियों ने भी अपराध किये हैं, मगर हमे उनसे आगे जाकर एक मूलभूत सवाल पूछने की जरुरत है। सरकार अपने ही नागरिको को क्यों कुचलती है? ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस पर हमला माओवादियों का हो सकता है और नही भी। पर जांच से पहले निष्कर्ष पर नही पहुंचना चाहिए।
- आपको इस तरह विचार व्यक्त करने से रोकने कि कोशिश की गयी थी?
गृह मंत्रालय ने कहा था कि ऐसा करके हम गैरकानूनी रोकथाम कानून कि धरा ३७ का उलंघन करेंगे। फिर भी मै ऐसा कर राही हूँ। क्योंकि सरकार को चुनौती देने का हमारे पास यही एकमात्र तरीका बचा है.

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