सच हम नहीं, सच तुम नहीं, सच है महज संघर्ष ही!

बुधवार, सितंबर 18, 2013

ब्राण्डेड भिखारियों की दूकान

पटना का हड़ताली चौक हो या दिल्ली का जंतर-मंतर, इसके आगोश में आने के बाद कार वाले लोग बे-कार और बेकार लोग सरगर्म हो जाते हैं। मैं भी एक दिन बे-कार के मानिंद जंतर-मंतर पहुंचा। जिंदाबाद-मुर्दाबाद के नारों से गूंजता वातावरण मुझे बड़ा ही रमणीय लगा। कहीं लोग धरना पर बैठकर वायलीन, ढोलक और तबले की थाप पर गानों की धुन निकाल कर अपना समय काट रहे थे तो कही सोकर।
तभी मेरी मुलाकात हुई एक बम्बईया बाबू से। जो बम्बई से यहां धरना देने आए थें। अभी जीवन के 19-20 बसंत देखे होंगे जनाब! पर इरादा एकदम बुलंद था। इनकी मांग थी रेहड़ी-पटरी पर सब्जी बेचने वालों को न्याय दिया जाए। जब मैंने पूछा कि भाई ई सब्जी वालों को कौन सी न्याय की जरूरत आन पड़ी। तब उसने विस्तार से बताया - सब्जी की दूकान थी साहेब। बहुत अच्छी चल रेली थी। दो टैम का रोटी आसानी से मिल जाता था। भाई लोगों का हफ्ता भी चुकता हो जाता था। लाइफ एकदम बिंदास चल रेली थी साहेब। एक दम रापचीक। साहेब प्राब्लम तब आया जब इधर अपुन लोगों के पेट पर लात मारकर मोबाइल बेचने वाले मामू लोग सब्जी का बड़ा-बड़ा दूकान खोला। दूकान बोले तो एकदम झकास। शीशा-वीशा लगा कर। अब फ्रेश-फ्रेश सब्जी एयरकंडीशंड दूकान में अपुन लोगों के रेट पर मामू लोग बेच रेला है, सो, हमारे कस्टमर बड़े-बड़े दूकानों की तरफ जाने का है न साहेब।
इधर जब पेट पर लात पड़ता है न साहेब तब दिमाग घूम जाता है। तब अपुन भी सोच लिया कि इधर भाई लोगों को फोकट में हफ्ता देने से बढि़या है कि आंदोलन करें। तब से इधर अपुन एक साल से बैठा है। पर अभी तक कोई हमारा आवाज सुनने को नहीं मांगता साहेब।
मैं भी सोचने लगा कि इनका हड़ताल एकदम वाजिब है। मैंने कहा तेरे लोगों का इधर धरना एकदम उचित है.....बोले तो एकदम उचित।
अब मैं आगे क्या कहता? बम्बईया बाबू को सांत्वना देकर वहां से चल दिया। अभी वहां से चला ही था कि एक भिखारी मेरे पीछे पड़ गया और बोलने लगा - दस रूपये दे दोना साब! बच्चा भूखा है...साब दे दोना साब!
मैंने भी उससे बम्बईया भाषा में बोला......अभी तेरे को इधर से निकलने का मांगता हैं और बड़े-बड़े साहबों से भीख नहीं मांगने का। क्या? बोले तो बड़े-बड़े साहबों से भीख नहीं मांगने का....। बड़ा साहब लोग बड़ा चालाक होने का। तुम्हारे हाथ में इतना सारा चिल्लर-पैसा देख लिया न तो समझो तुम्हारा काम फिनिश। बोले तो फिनिश....। वह भी सब्जी की दूकान के बाद भिखारियों की दूकान खोल लेगा और अपना ब्राण्डेड भिखारी रोड पर दौड़ाने लगेगा। फिर तुम लोगों को भीख कौन देगा ? तेरे शरीर से तो बदबू आ रेली है बाप! लोग सोचेंगे कि बदबूदार भिखारियों को भीख देने से अच्छा तो परफ्यूम लगाए ब्राण्डेड भिखारियों को भीख दें। तब तुम लोग भी इधर जंतर-मंतर और हड़ताली चौक पर धरना देता फिरेगा । इसलिए इधर से अभी निकल लेने का.....वह देखो बड़ा साब आ रेला है और भिखारी तेज कदमों से वहां से निकल लिया।
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- सौरभ के.स्वतंत्र
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